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आमुख
मानवव्यक्तित्वका सर्वतोमुखी विकास होनेमें जो अनेक गुण सहायक हैं उन गुणोंका जीवनमें आचरण कैसे करना ? यह प्रश्न प्रत्येक जीवनविकास-यात्रीके समक्ष एक या दूसरे रूपमें किसी भी समय अवश्य उपस्थित होता है। इस प्रश्नको हल करनेके अनेक उपाय हैं। उनमें एक श्रेष्ठ उपाय यह है कि पूर्व में जिन महापुरुषोंने वैसे गुणोंका आचरण किया है उनके उन गुणोंका दिग्दर्शन करानेवाले जीवन-प्रसंगोंका अध्ययन करके उनसे प्रेरणा लेना।
अनेक गुणोंके प्रगट होनेमें कारणभूत ऐसे आध्यात्मिक जीवन जीनेकी उत्तम परम्परा इस देशमें प्राचीन कालसे चली आ रही है और इसीलिए इस देशकी संस्कृतिमें आध्यात्मिकताकी मुख्यता विद्यमान है। राजकीय स्वतन्त्रता प्राप्तिके बाद इस मूल संस्कृतिका विशेष विकास होगा ऐसी अपनी संस्कृतिके प्रवर्तकों और उपासकोंकी भावना सफल नहीं हुई है। यह स्वाभाविकरूपसे खेदका कारण है, परन्तु खेदमात्र करनेकी अपेक्षा उस स्थितिका योग्य प्रतिकारक वास्तविक उपाय प्रस्तुत किया जाय तो अच्छा, ऐसा प्रतीत होनेसे संस्कारपोषक साहित्यका सर्जन और वितरण ही उसका एक उपाय है ऐसा अनेक मनीषियोंको लगा।
उपरोक्त विचारसरणीके साथ इस पुस्तकके प्रयोजक भी सम्मत हैं और इसका प्रकाशन भी इसी दिशामें एक नम्र प्रयास है। यदि अपनी जनताका और विशेषरूपसे युवावर्गका ध्यान, अपने देशमें हुए अनेक महापुरुषोंके उदात्त जीवन-प्रसंगोंकी ओर खींचा जाय तो निश्चय ही उसका अच्छा परिणाम आयेगा इसी भावनाके साथ इस
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