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भौगोलिक सामग्री
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के लिए यहाँ राजा सम्प्रति और आर्य सुहस्ति पधारे थे। इसके अलावा आचार्य चंडरुद्र ने यहाँ विहार किया था। जैन साधुओं को यहाँ कठोर नियमों का पालन करना पड़ता था।२१ अवंति जनपद की पहचान वर्तमान में मालवा क्षेत्र (म.प्र.) से की जाती है।१२
कुणाल
कुणाल जनपद को ही उत्तर कोशल कहा जाता था। सरयू नदी कोशल जनपद को उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल इन दो भागों में विभक्त करती है।१३ कुणाल देश की राजधानी श्रावस्ती थी, जिसकी तुलना सहेट-महेट (जिला गोंडा, उ.प्र.) से की जाती है। यह नगरी ऐरावती नदी के किनारे बसी थी। जैन सूत्रों में उल्लेख है कि इस नदी में बहुत कम पानी रहता था, इसके अनेक प्रदेश सखे थे और जैन श्रमण इसे पार करके भिक्षा के लिए जाते थे।१४ इस नदी में बाढ़ आने से लोगों का बहुत नुकसान हो जाता था।१५।
जिनप्रभसूरि के अनुसार यहाँ समुद्रवंशीय राजा राज्य करते थे, जो बुद्ध के परम उपासक थे और बुद्ध के सम्मान में वरघोड़ा निकालते थे। यहाँ पर कई किस्म का चावल पैदा होता था।१६ ___ इत्येव निप्पंजंति नाणाविहा साली' सिन्धु-सौवीर
सिन्धु-सौवीर दोनों एक ही जनपद में सम्मिलित थे। सिन्दु देश में बाढ़ बहुत आया करती थी। यह देश चरिका, परिव्राजिका, कर्पाटिका, तंचनिका (बौद्धभिक्षुणी) और भागवी आदि अनेक पाखण्डी श्रमणियों का स्थान था, अतः जैन साधुओं को इस देश में गमन करने का निषेध था। यदि किसी अपरिहार्य कारणों से उन्हें वहाँ जाना पड़े तो शीघ्र ही लौट आने का विधान था।१७ भोजनपान की यहाँ शुद्धता नहीं थी। मांस भक्षण का यहाँ रिवाज था। यहाँ के निवासी मद्यपान करते थे१८ और मद्यपान के पात्र से ही पानी पी लिया करते थे। भिक्षा प्राप्त करने के लिए यहाँ स्वच्छ वस्त्रों की आवश्यकता होती थी।१९
वीतिभयपट्टन सिन्धु-सौवीर की राजधानी थी। इसका दूसरा नाम कुम्भारप्रक्षेप (कुमारपक्खेप) बताया गया है। 'सिणवल्लीए कुंभारपक्खेव नाम पट्टणं'२० यह नगर सिणवल्लि में अवस्थित था। सिणवल्लि एक विकट रेगिस्तान था जहाँ व्यापारियों को क्षुधा और तृष्णा से पीड़ित हो अपने जीवन से हाथ धोना