________________
अध्याय-२
भौगोलिक सामग्री बृहत्कल्पभाष्य में भूगोल विषयक सामग्री यत्र-तत्र प्रकीर्ण रूप से उपलब्ध होती है जिसमें जनपद, नगर, ग्राम, पर्वत और नदियाँ आदि उल्लिखित हैं। इनके परिशीलन से तत्कालीन भारत की भौगोलिक दशा का आकलन यथार्थरूपेण होता है। इनका विस्तृत विवरण निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया गया है।
जनपद
राजा द्वारा शासित प्रजा को 'जन' कहते थे। प्रजा के निवास क्षेत्र को जनपद कहते थे। प्रस्तुत ग्रन्थ में जिन जनपदों या देशों का उल्लेख है उनमें मुख्य हैंसुराष्ट्र, अवंति, कुणाल, सिन्धु-सौवीर, शूरसेन, कोशल, आंध्र और नेपाल। सुराष्ट्र
बृहत्कल्पभाष्य में सुराष्ट्र की गणना महाराष्ट्र, आन्ध्र और कुडुक्क (कुर्ग) जैसे देशों के साथ की गई है। वहाँ के राजा सम्प्रति ने अपने भटों को भेजकर जैन धर्म का प्रचार किया था। उसके समय में यहाँ जैन धर्म का काफी प्रचार-प्रसार हुआ। वर्तमान गुजरात प्रदेश का काठियावाड़ क्षेत्र ही प्राचीन सुराष्ट्र था। कालकाचार्य यहाँ पारसकुल (ईरान) से ९६ शाहों को लेकर आये थे, इसलिए इस देश को ९६ मंडलों में विभक्त किये जाने का उल्लेख प्राप्त होता है। सुराष्ट्र व्यापार का एक बहुत बड़ा केन्द्र था जहाँ दूर-दूर के व्यापारी माल खरीदने आते थे।
द्वारका (जूनागढ़) सौराष्ट्र की मुख्य नगरी थी। इसका दूसरा नाम कुशस्थली भी था। द्वारका एक अत्यन्त और समृद्ध-नगर था जो चारों ओर से पाषाण के प्राकार से परिवेष्टित था। वसुदेवहिण्डी में उसे अनार्त, कुशार्त और सौराष्ट्र की राजधानी कहा है। अवन्ति
अवन्ति एक प्राचीन जनपद था। उज्जयिनी इसका महत्त्वपूर्ण नगर था। उसे उत्तर अवन्ति की राजधानी कहा गया है। जीवन्तस्वामी प्रतिमा के दर्शन करने