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सामाजिक जीवन
४. पूरिका- इसकी बनावट झिल्लड़ होती थी। इसका दूसरा अर्थ पाट की बनी चादर भी होता था।
५. विरलिका- दो सूती।
दूसरे जोड़ में उपधान, तूलि, आलिंगनिका, गंडोपधान और मसूरक नाम की तकियों का वर्णन है।१२० जैन साध्वियों की वेश-भूषा
जैन साध्वियों की वेश-भूषा लंबी चौड़ी होती थी। उनके पहनावे में इस बात का ध्यान रखा जाता था कि उनका शरीर पूरी तरह से ढंक जाय। 'बृहत्कल्पसूत्रभाष्य' में उनके पहनावे के ग्यारह वस्त्र गिनाये गये हैं- जैसे अवग्रह, पट्ट, अर्घोरुक, चलनिका, अभ्यंतरनिवसनी, बहिर्निवसनी, कंचुक, औपकक्षिकी, वैकक्षिकी, संघाटी और स्कंधकारिणी।
उग्गहणंतग पट्टो अड्डोरुअ चलणिया य बोधव्वा । अब्भिंतर-बाहिणियंसणी य तह कंचुए चेव ।। उक्कच्छिय वेकच्छिय, संघाडी चेव खंधकरणी य ।
ओहोवहिम्मि एते, अज्जाणं पण्णवीसं तु ।।१२१ १. अवग्रह- शरीर के गुप्तांग को ढंकने का वस्त्र। यह बीच में चौड़ा और छोरों पर सकरा होता था। यह महीन बिना हुआ मुलायम कपड़ा होता था।१२२
२. पट्ट- यह वस्त्र कमर में बंधा रहता था। इसकी चौड़ाई चार अंगुल होती थी और लम्बाई साध्वी के कमर की नाप के अनुसार यह वस्त्र अवग्रह के छोरों से ढंकता था और इसका रूप जांघिया सा होता था। यह मध्यकालीन नीवीबंध का ही एक प्राचीन रूप था।१२३
३. चलनिका- यह अर्धारुक जैसा ही वस्त्र था। केवल फरक इतना ही था कि यह आधी जांघों तक पहुँचता था। यह बेसिला वस्त्र होता था और उसके आकार की तुलना बांस पर नाचने वाले नट (लासिक) की कछाड़ेदार धोती से की जा सकती थी।१२४
४. अर्धारुक-अवग्रह और पट्ट के ऊपर का यह वस्त्र पूरी कमर ढांकता था। इसका रूप तहमत (मल्लचलनाकृति) की तरह होता था, केवल फरक इतना था कि इसका चौड़ा सिरा दोनों जांघों के बीच कसकर बांध दिया जाता था (उरुद्वये च कसावबद्ध)।१२५