Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 61
________________ अध्याय- ४ आर्थिक जीवन कृषि भारत सदा से एक कृषि प्रधान देश रहा है। कृषि ही लोगों के आय का मुख्य स्त्रोत थी । कृषि उत्पादन से जहाँ एक ओर लोग अपनी आवश्यक आवश्यकताएँ पूरी करते थे वहीं दूसरी ओर उन्हें विनिमय कर उन्हें बेचकर आर्थिक लाभ कमाते थे। कृषि के अतिरिक्त लोग तरह-तरह के उद्योग-धन्धे, वाणिज्यव्यापार आदि करते थे। अहिंसा का कठोरता से पालन करने के कारण जैन समुदाय के लोग कृषि कार्य कम करते थे क्योंकि इस पेशे में हिंसा की ज्यादा संभावना रहती है । इसीलिए प्राचीन काल से ही और आज भी जैनी उद्योग और व्यापार जैसे कम हिंसा वाले पेशे अपनाये हुए हैं। लेकिन प्रस्तुत ग्रन्थ चूँकि निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों के जीवन - व्यापार से सम्बन्धित है इसलिए उसमें आर्थिक जीवन से संबंधित सभी पक्षों पर चर्चा की गयी है। कृषि योग्य भूमि को 'खेत्त' कहते थे।' खेत को दस प्रकार के परिग्रहों क्षेत्र - क्षेत्र, वास्तु, धन, धान्य, संचय, मित्र - जाति तथा संयोग, यान, शयन, आसन, दासदासी तथा कुप्य-उपस्कर आदि में गिना गया है। खेत्तं वत्युं धण धन्न संचओ मित्त - णाइ - संजोगो । जाण सयणा -ऽऽसणाणि य, दासी दासं च कुवियं च ॥ २ खेती योग्य भूमि बनाने के लिए जंगलों को जलाकर साफ किया जाता था। भूमि पर राजा का स्वामित्व था क्योंकि उसे पृथ्वी का स्वामी कहा गया है। वन्य पशुओं से फसलों की रक्षा हेतु बाड़े बनाये जाते थे । ' फसलों की सुरक्षा करने के लिए कृषक - बालिकाएँ 'टिट्टि', 'टिट्टि' चिल्लाकर जानवरों को भगाया करती थीं। कृषि उपकरण 'बृहद्कल्पसूत्रभाष्य' में हल, कुदाल और हसियाँ जैसे कृषि उपकरणों का उल्लेख प्राप्त होता है।" अन्न की फसल काटने पर खलिहान में धान्य तथा भूसे

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