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बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन
रथसेना
अति प्राचीनकाल में युद्ध में रथसेना की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती थी। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि समसामयिक काल में इसका महत्त्व घट गया था क्योंकि बृहत्कल्पभाष्य में इसकी कोई भी चर्चा नहीं है । अन्य जैन ग्रंथों में इसके संबंध में कुछ सूचनाएँ अवश्य पायी जाती हैं। उनमें बताया गया है कि यह छत्र, ध्वज, पताका, घटा, तोरण, नंदिघोष और छोटी-छोटी घंटिकाओं से सुसज्जित होता था। इसकी रचना हिमालय में उत्पन्न तिनिस की लकड़ी से की जाती थी। उसके चक्के मजबूत होते थे, उसमें उत्तम नस्ल के घोड़े जोते जाते थे और उसे योग्य सारथी हाँकता था। उसके दो प्रकार भी बतलाये गये हैं- संग्रामरथ (युद्धरथ) और यानरथ (सामान्य रथ) । ५५ यान रथ का उल्लेख बृहत्कल्पभाष्य में भी हुआ क्योंकि यार में ही जिन प्रतिमा रखकर उज्जैनी का मौर्य सम्राट संप्रति रथयात्रा का उत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाता था । ५७
गजसेना
सेनाओं में गजसेना को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। जैनागम ग्रन्थ स्थानांगसूत्र में मृग, भद्र और संकीर्ण आदि हाथी के चार प्रकार बताये गये हैं। इनमें मद्र हाथी को सर्वोत्तम माना गया है । ५८ मधु-गुटिका की भाँति पिंगल नेत्र वाला, सुन्दर एवं दीर्घ पूँछ वाला, अग्र भाग में उन्नत तथा सर्वांग परिपूर्ण होता है। यह सरोवर में क्रीड़ा करता है तथा दाँतों से प्रहार करता है । ५९ बृहत्कल्पभाष्य° में सरोवर में स्नान करने वाले हाथी का उल्लेख है जो स्नान के बाद अपनी पीठ पर धूल डालता था। बृहत्कल्पभाष्य के अनुसार हाथियों को प्रशिक्षण देने के लिए उनको अपने सूड़ से क्रमशः काष्ठ, छोटे- पत्थर, गोली, बेर और अन्ततः सरसों उठाने का अभ्यास कराया जाता था । ६१ हाथियों से सम्बन्धित अन्य जानकारी दूसरे जैन ग्रन्थों में सुरक्षित है । उनको प्रशिक्षण देने वाले दमग उन्हें वश में करते; मेरू, हरे गन्ने, टहनी (यवस) आदि खिलाकर उन्हें सवारी के काम में लेते और आरोह युद्धकाल में उन पर सवारी करते थे । १२ कौशाम्बी का राजा उदयन अपने मधुर संगीत द्वारा हाथियों को वश में करने की कला में निष्णात माना जाता था । ६३ मूलदेव ने भी एक वीणा बजाकर एक हथिनी को वश में कर लिया था । १४ महावत (महामात्र; हत्थिवाउस) हस्तिशाला ( जड्डशाला ) ६५ की देखभाल करते । अंकुश६ की सहायता से वे हाथी को वश में रखते, तथा शूल (उच्चूल), , वैजयन्ती (ध्वजा), माला और विविध अलंकारों से उन्हें विभूषित करते थे। हाथियों की