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बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन
श्रमण-श्रमणियों को शादी के समय अथवा विकाल में वस्त्रादि ग्रहण नहीं करना चाहिए। रात्रि में वस्त्रादि ग्रहण करने से लगने वाले दोष एवं प्रायश्चित्त, इस नियम से सम्बन्धित अपवाद, गृह भद्र, संयत, प्रान्त चोर द्वारा श्रमण और श्रमणी इन दो में से कोई एक लूट लिया गया हो तो परस्पर वस्त्र आदान-प्रदान करने की विधि, श्रमण-गृहस्थ, श्रमण-श्रमणी, समनोज्ञ-अमनोज्ञ अथवा संविग्नअसंविग्न ये दोनों पक्ष लूट लिये गये हों उस समय एक दूसरे को वस्त्र आदानप्रदान करने की विधि का उल्लेख किया गया है।४
श्रमण-श्रमणियों के लिए रात्रि में अथवा विकाल में अध्वगमन यानी विहार करना निषिद्ध है। अपवादरूप से रात्रिगमन की छूट दी गई है किन्तु उसके लिए अध्वोपयोगी उपकरणों का संग्रह तथा योग्य सार्थ का सहयोग आवश्यक है।७५ विहार करते समय मांगकर लाया हुआ शय्या संस्तारक स्वामी को सौंपकर ही विहार करना चाहिए।७६ इसके अतिरिक्त विहार का समय, शुभ-अशुभ शकुनों को विचार, निवासयोग्य क्षेत्र, मार्ग, पानी, भिक्षाचर्या, चोर आदि की भी जाँच कर लेनी चाहिए। शील
साधु-साध्वियों के शील के सम्बन्ध में बतलाया गया है कि सविशुद्ध कर्मों का आचरण करते हुये मृत्यु का आलिंगन करना उचित है लेकिन अपने शीलव्रत से स्खलित होना उचित नहीं है।
वरं प्रवेष्टुं ज्वलितं हताशन, न चापि भग्नं चिरसंचिंतं व्रतम् । वरं हि मृत्युः सुविशुद्धकर्मणो न चापि शीलस्खलितस्य चीवितम् ।।७८
उपाश्रय में भिक्षुणियों को कभी अकेला नहीं छोड़ा जाता था। उन्हें अकेले आहार, गोचरी या शौच के लिए जाना भी निषिद्ध था।७९ भाष्य में भिक्षुणियों को धारण किये जाने वाले ११ वस्त्रों का उल्लेख है। यात्रा के समय उन्हें सभी वस्त्रों को धारण करने का निर्देश दिया गया था। भिक्षुणियाँ अपने प्रयोग के लिए डण्ठल युक्त दुम्बी तथा डण्डेवाला पाद-पोंछन नहीं रख सकती थीं। इसी प्रकार भोजन में वे अखण्ड केला नहीं ले सकती थीं।८२ उपाश्रय के सम्बन्ध में भी ऐसी सतर्कता रखी जाती थी। उपयुक्त आवास पाने का वह हर सम्भव प्रयत्न करती थी, परन्तु यदि उपयुक्त आवास नहीं मिलता था तो विवश होकर उसे अन्य उपाश्रयों में रहना पड़ता था। इसके लिए विस्तृत नियमों का प्रतिपादन 'बृहत्कल्पभाष्य' में मिलता है।८३ संघ के नियमानुसार अकेली भिक्षुणी को अकेले