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११० बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन दोपहर और संध्या के समय पटह बजाया जाता था।११२ ___कभी गृहपत्नी के अपने पति द्वारा अपमानित होने पर, या पुत्रवती पत्नी द्वारा सम्मान प्राप्त न करने पर, अथवा अतिशय रोगी रहने के कारण, अथवा किसी साधु से झंझट हो जाने पर शान्ति के लिए व्यंतर की पूजा की जाती थी
और वह रात्रि के समय जैन साधुओं को भोजन कराने से तृप्त होता था।११३ __कुण्डलमेण्ठ व्यंतर की यात्रा भृगुकच्छ के आसपास के प्रदेश में की जाती थी। इस अवसर पर लोग संखडि मनाते थे।११४ नया मकान तैयार हो जाने पर भी व्यंतरों की अराधना की जाती थी।११५ ऋषिपाल नामक व्यंतर ने ऋषितडाग (इसितडाग)११६ नाम का एक तालाब बनवाया था जहाँ प्रतिवर्ष आठ दिन तक उत्सव मनाया जाता था।११७ जैनसूत्रों में किन्नर, पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, महोरग
और गन्धर्व १८ इन आठ व्यंतर देवों के आठ चैत्य वृक्षों का उल्लेख है- पिशाच का कदंब, यक्ष का वट, भूत का तुलसी, राक्षस का कांडक, किन्नर का अशोक, किंपुरुष का चम्पक, महोरग का नाग और गन्धर्व का तेंदुक।१९ डाकिनियां और शाकिनियां भी उपद्रव मचाती रहती थीं। गोल्ल देश में रिवाज था कि डाकिनी के भय से रोगी को बाहर नहीं निकाला जाता था।१२०
गुह्यकों के विषय में लोगों का विश्वास था कि वे कैलाश पर्वत के रहने वाले हैं, और इस लोक में खानों के रूप में निवास करते थे।१२१ यदि कभी कालगत होने के पश्चात् जैन साधु व्यंतर देव से अधिष्ठित हो जाता तो उसके मूत्र को बायें हाथ में लेकर उसके मृत शरीर को सींचा जाता और गुह्यक का नामोच्चारण कर उसे संस्तारक से न उठने का अनुरोध किया जाता।१२२ ___ 'जैन आगमों के टीकाकार अभयदेवसूरि ने चैत्य को देवप्रतिमा या व्यंतरायतन के अर्थ में प्रयुक्त किया है।१२३
भूतमह
प्रस्तुत ग्रंथ से ज्ञात होता है कि उस समय लोगों का भूत-प्रेतों में बहुत अधिक विश्वास था। उनका मानना था कि भूत दुकानों से खरीदे जा सकते हैं। उल्लेख है कि एक बार एक वैश्य भूत खरीद कर ले आया। वह उसे जो काम बताता, उसे वह तुरन्त कर डालता। आखिर में तंग आकर वैश्य एक खंभा गाड़ दिया और उस पर उतरते-चढ़ते रहने को कहा। इस भूत ने भड़ौंच के उत्तर में 'भूततडाग' नाम का एक तालाब बनवाया।१२४