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कला एवं स्थापत्य
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बृहत्कल्पभाष्य में मांगलिक चैत्य के कुछ एक उदाहरण भी दिये हैं। उल्लेख है कि मथुरा नगरी अपने मंगल चैत्य के लिए प्रसिद्ध थी। यहाँ पर गृह-निर्माण करने के बाद उत्तरंगों में अर्हत्-प्रतिमा की स्थापना की जाती थी। लोगों का विश्वास था कि इससे गृह के गिरने का भय नहीं रहता।३२ जीवन्तस्वामी की प्रतिमा को चिरंतन चैत्य में गिना गया है।२३ घरेलू उपयोग में आने वाले सामानों में पंखा (वाजन), छत्र (चत्त) और उण्ड (दंड) का उल्लेख है।३४
संगीत ___प्राचीन भारत में संगीत कला को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। राजा-महाराजा और अभिजात-वर्ग के लोग ही नहीं, अपितु साधारण लोग भी गाने-बजाने और नृत्य के शौकीन थे। मान्य बहत्तर कलाओं में संगीत भी शामिल है। इसमें नृत्य, गीत, स्वरगत, वादित्र, पुस्करगत और समताल के नाम आते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि प्राचीन भारत में संगीत और नृत्य का काफी प्रचार था।३५ संगीत की तीन विधाएँ हैं- गायन, वादन और नृत्य।
भारतीय जनमानस का व्यावहारिक जीवन धर्म से अनुप्राणित रहा है। संगीत ने तत्कालीन धर्म को भी प्रभावित किया और धार्मिक अभिव्यंजना को संगीत कला द्वारा पुष्पित व पल्लवित करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सामान्य जन में धर्म के प्रचार हेतु प्रचलित गीतों का प्रयोग किया जाता था जो लोगों पर अपना महत्त्वपूर्ण प्रभाव भी डालते थे।२६
समाज में तरह-तरह के उत्सव मनाये जाते थे। इन उत्सवों पर नागरिकों द्वारा गीत-नृत्य आदि के विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते थे। विभिन्न ऋतुओं के आगमन पर भी उत्सवों का आयोजन किया जाता था और सामूहिक रूप से गायन-वादन होता था। बृहत्कल्पभाष्य में इंदमह,३७ थूभमह और पव्वमह३९ का उल्लेख भी हुआ है। इन्द्रमह तो निरन्तर एक सप्ताह तक मनाया जाता था। संगीत प्राचीन काल से ही विलास सामग्रयों का अभिन्न अंग रहा है। सुन्दर वस्त्र, आभूषण के अतिरिक्त संगीत भी आवश्यक अंग माना जाता था। ___ जैन ग्रंथों में ६० प्रकार के वाद्ययंत्रों के नाम गिनाये गये हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में भी बारह वाद्ययंत्रों का नामोल्लेख है २ - भंभा, मुकुन्द, मद्दल, कडंब, हुडुक्क, कांस्यताल, काहल, वंश, पणव और शंख।
मनोरंजन एवं कला की दृष्टि से संगीत को अनिवार्य माना जाता था। नाट्य, वाद्य, गेय और अभिनय के भेद से संगीत को चार प्रकार का बताया गया है।