Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 129
________________ १२० बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन इस समय सुंदर व्यक्तिचित्र बनाये जाते थे क्योंकि बृहत्कल्पभाष्य में उल्लेख है कि राजकुमार सागरचन्द कमलामेला के चित्र को देखकर मोहित हो गया और उससे प्यार करने लगा। इसी प्रकार किसी परिव्राजिका ने जब चेटक की कन्या राजकुमारी सुज्येष्ठा का चित्र एक फलक पर बनाकर राजा श्रेणिक को दिखाया तब वह उसे देखकर मोहित हो गया। प्राचीन काल में चित्रशालाएँ होती थीं। राजाओं के लिए तो वे गर्व की वस्तु थीं। अन्य लोग भी चित्रशालाएँ बनवाते थे। बृहत्कल्पभाष्य में एक वेश्या के चित्रशाला का उल्लेख है जिसमें उसने मनुष्य की विभिन्न जातियों की विशेषताओं का और भाँति-भाँति के प्रेमी युगलों का चित्रण कराया था। जब कोई व्यक्ति उसके यहाँ जाता था तब वह उसे अपनी चित्रसभा दिखाकर पूछती थी कि कौन-सा दृश्य उसे सबसे अधिक प्रिय लगा। आगन्तुक के उत्तर से ही वह उसकी जाति, पसन्द और गुण-दोष का आकलन कर लेती थी। सैकड़ों खम्भों से निर्मित एक आकर्षक चित्रशाला राजगृह में भी थी जिसे किसी श्रेष्ठी ने बनवाया था।१० वैशाली की प्रसिद्ध नर्तकी आम्रपाली के पास भी चित्रशाला थी।११ मूर्तिकला भारत में अति प्राचीन काल से मूर्तियों का निर्माण होने लगा था। सिन्धुघाटी की ताम्रपाषाण कालीन सभ्यता में पत्थर, धातु और मिट्टी की बहुत-सी मूर्तियाँ मिली भी हैं।१२ तीर्थंकर महावीर के समय में लकड़ी की भी मूर्तियाँ बनाई जाती थीं।१३ बृहत्कल्पभाष्य में शिव की काष्ठ प्रतिमा का उल्लेख प्राप्त होता है जिससे प्रतीत होता है कि भाष्यकार के समय में भी काष्ठ की मूर्तियाँ बनाई जाती थीं। प्रस्तुत ग्रन्थ में एक जगह यह भी उल्लेख है कि स्कन्द (कात्तिकेय), मुकुन्द (विष्णु) और अन्य देवताओं के मंदिरों में उन-उन देवताओं की काष्ठ प्रतिमाएँ प्रतिष्ठिापित और पूजी जाती थीं। इसके अतिरिक्त उस समय मिट्टी (पुत्थ), हाथी दाँत (दन्त), पत्थर (सेल) और मणि की मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं।१६ बृहत्कल्पभाष्य में यन्त्रमय प्रतिमाओं का भी उल्लेख प्राप्त होता है। ऐसी प्रतिमाएँ चलती-फिरती और पलक मारती थीं। पादलिप्त आचार्य ने किसी राजा की बहन की प्रतिमा बनायी थी, जो भ्रमण करती थी, पलक मारती थी और हाथ में व्यंजन लेकर आचार्यों के समक्ष उपस्थित हो जाती थी। कहा गया है कि यवन देश में आगन्तुकों को इसी प्रकार स्त्री बनाकर छोड़ दिया जाता था।१७

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