Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 117
________________ १०८ बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन देवी-देवता भारतीयों का देवी-देवताओं में दृढ़ विश्वास था और वे उनके सम्मान में उत्सव मनाते थे। प्रस्तुत ग्रन्थ में भी अनेक देवी-देवताओं के उत्सवों का वर्णन मिलता है। इन्द्रमह वैदिक ग्रंथों में इन्द्र को सर्वोपरि माना गया है। वह समस्त देवताओं में अग्रणी थे। लेकिन इन्द्र को परस्त्रीगामी भी बताया गया है। उसमें उल्लेख है कि एक बार इन्द्र ने उदन्त ऋषि की पत्नी के साथ दुष्कर्म किया जिससे ऋषि ने उसे शाप दे दिया और उसे ब्रह्महत्या का दोष लगा।९० जैन ग्रन्थों में भी इन्द्र का उल्लेख मिलता है। बृहत्कल्पभाष्य में हेमपुर में इन्द्रमह मनाये जाने का भी उल्लेख मिलता है। यहाँ इन्द्र-स्थान के चारों ओर नगर की पाँच सौ कुल-बालिकाएँ एकत्रित हो, अपने सौभाग्य के लिए पुष्प और धूप आदि से इन्द्र की पूजा उपासना करती थीं।९१ हरिवंश पुराण में ‘इन्द्रमह' के उत्सव के रूप में इन्द्रध्वज के पूजन का उल्लेख है। प्राचीन उत्सवों में इन्द्रमह विशेष महत्त्वपूर्ण था।९३ 'राजतरंगिणी' में भी इन्द्र के उत्सव का वर्णन है।९४ इन्द्र महोत्सव के समय आमोद-प्रमोद में उन्मत्त रहने के कारण जिन सगे-सम्बन्धियों को आमंत्रित नहीं किया जा सकता था उन्हें भी प्रतिपदा के दिन बुलाया जाता था।५ ज्ञाताधर्मकथा, जीवाजीवाभिगम, निशीथसूत्र और अर्थशास्त्र में इन्द्रमह के अतिरिक्त स्कन्दमह, नदीमह, तडागमह, पर्वतमह (पव्वयमह) आदि का भी उल्लेख है जो क्रमशः आषाढ़, आसोज, कार्तिक और चैत्र की पूर्णिमाओं के दिन मनाया जाता था तथा उस समय लोग खूब खाते-पीते और नाचते गाते थे।९६ जैन ग्रन्थों में इन्द्रोत्सव का भी उल्लेख मिलता है।९७ . तीर्थंकर भक्तों में इन्द्र का सर्वोत्तम स्थान माना गया है। तीर्थंकर के गर्भ में आने से छहः माह पूर्व ही रत्नों की वर्षा, एक सहस्र आठ कलशों से स्तवन और केवल ज्ञान के उत्पन्न होने पर समवसरण की रचना, इन्द्र की तीर्थंकरभक्ति के ज्वलन्त उदाहरण हैं।९८ 'इन्द्रमहोत्सव' के सम्बन्ध में 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित'९९ में एक कथा का उल्लेख मिलता है। एक बार ऋषभदेव के पुत्र भरत ने इन्द्रदेव से पूछा कि क्या आप स्वर्ग में इसी रूप में रहते हैं? इन्द्र ने उत्तर दिया कि वहाँ के रूप को मनुष्य देख ही नहीं सकता। भरत ने देखने की इच्छा प्रकट की, तो इन्द्र

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