Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 114
________________ धार्मिक जीवन इन्हीं क्षेत्रों में साधु-स -साध्वियों को यात्रा करने का निर्देश दिया गया था। इसका कारण यह बताया गया है कि भिक्षु भिक्षुणियों को इन क्षेत्रों में आहार तथा उपाश्रय की सुलभता रहती है तथा यहाँ के लोग जैन आचार-विचार से परिचित होते हैं। निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को वैराज्य अर्थात् विरुद्ध राज्य में पुनः पुनः गमनागमन निषिद्ध था। यदि किसी जनपद में व्यापारियों का गमनागमन रहता तो साधु को भी उस जनपद में करने की अनुज्ञा थी अन्यथा विरुद्ध राज्य होने से वहाँ गमनागमन का निषेध किया गया है । ७२ १०५ बृहत्कल्पभाष्य ३ में निम्न सोलह प्रकार की वस्तियों एवं स्थानों का उल्लेख किया गया है १. ग्राम - जहाँ राज्य की ओर से अट्ठारह प्रकार के कर लिये जाते हों । २. नगर- जहाँ अठारह प्रकार के करों में से एक भी प्रकार का कर न लिया जाता हो । २. खेत - जिसके चारों ओर मिट्टी की दीवाल हो । ४. कर्बट - जहाँ कम लोग रहते हों । ५. मडम्ब - जिसके बाद ढाई कोस तक कोई गाँव न हो । ६. पत्तन - जहाँ सब वस्तुएँ उपलब्ध हों। ७. आकर - जहाँ धातु की खाने हों। ८. द्रोणमुख - जहाँ जल और स्थल को मिलाने वाला मार्ग हो, जहाँ समुद्री माल आकर उतरता हो । ९. निगम - जहाँ व्यापारियों की वसति हो । १०. राजधानी - जहाँ राजा के रहने के महल आदि हों । ११. आश्रम - जहाँ तपस्वी आदि रहते हों। १२. निवेश - जहाँ सार्थवाह अपने माल उतारते हों । १३. सम्बाध - जहाँ कृषक रहते हों अथवा अन्य गाँव के लोग अपने गाँव से धन आदि की रक्षा के निमित्त पर्वत, गुफा आदि में आकर रुके हुए हों। १४. घोष - जहाँ गाय चराने वाले लोग रहते हों । १५. अंशिका - गाँव का अर्थ, तृतीय अथवा चतुर्थ भाग । १६. पुटभेदन - जहाँ दूर-दूर से परगाँव के व्यापारी अपनी चीजें बेचने आते हों।

Loading...

Page Navigation
1 ... 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146