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बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन
करने का निर्देश दिया गया था।६५ 'बृहत्कल्पसूत्र' में भिक्षु-भिक्षुणियों को पूर्व दिशा में अंग से मगध तक, दक्षिण दिशा में कौशाम्बी तक, पश्चिम दिशा में स्थूण (स्थानेश्वर) तक उत्तर दिशा में कुणाल (श्रावस्ती) देश तक यात्रा करने का निर्देश दिया गया है।६६ भिक्षुणी को यात्रा के समय ग्राम में एक रात तथा नगर में पाँच रात तक निवास करने का विधान है।६७
भिक्षु-भिक्षुणियों को यद्यपि वैराज्य, अराजक तथा नृपहीन राज्यों के मध्य से यात्रा करने का निषेध किया गया है, किन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों में इनमें यात्रा करने की छूट दी है। जैसे- (१) साध्वी के माता-पिता यदि दीक्षा के लिए उद्यत हों, (२) यदि उसके माता-पिता शोक से विह्वल हों, तो उन्हें सान्त्वना प्रदान करने के लिए (३) प्रत्याख्यान (समाधिमरण) की इच्छुक साध्वी यदि अपने गुरु के पास आलोचना के लिए जाय, (४) शास्त्रार्थ के लिए आह्वान करने पर, (५) आचार्य का अपहरण कर लिये जाने पर उनके विमोचन के लिए यात्रा करने की छूट दी गयी है।।६८
इसी प्रकार के अन्य कारणों के उपस्थित होने पर उनको यदि आराजक राज्यों से जाना आवश्यक हो तो उन्हें आवश्यक निर्देश दिया गया था। वे सर्वप्रथम सीमावर्ती आरक्षक से इसके लिए अनुमति लें, उसके निषेध करने पर नगरसेठ से अनुमति लें तथा उसके भी निषेध करने पर सेनापति से तथा अन्त में स्वयं राजा से अनुमति लेने का प्रयत्न करें। इनकी अनुमति प्राप्त होने पर ही ऐसे राज्यों के मध्य से यात्रा करने का विधान था।६९
'बृहत्कल्पभाष्यकार' ने विहार योग्य २५.५ आर्य- देशों के नाम भी गिनाये हैं
नामं ठवणा दविए, खेत्ते जाती कुले य कम्मे य।
भासारिय सिप्पारिय, णाणे तह दंसण चरित्ते ।।७० मगध, अंग, बंग, कलिंग, काशी, कौशल, कुरु, सौर्यपुर (कुशात), पांचाल (कंपिल्ल), जंगल (अहिच्छला), सौराष्ट्र, विदेह, वत्स (कौशाम्बी), संडिब्म (नंदीपुर), मलय (भद्दिलपुर), वत्स (वैराट), अच्छ (वरण), दशार्ण, चेदी, सिन्धु-सौवीर, शूरसेन, भंग (पावा), कुणाल (श्रावस्ती), वर्त-मासापुरी पुरिवट्ट (मास?), लाट (कोटिवर्ष) तथा अर्द्धकेकया