Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 104
________________ राजनैतिक जीवन ७२. वसुदेवहिण्डी, प्र. ख. २८५ ७३. ज्ञाताधर्मकथा की टीका में आकीर्ण घोड़ों को ‘समुद्रमध्यवर्ती' बताया है। ७४. उत्तराध्ययन ११.१६ और टी.। स्थानांग (४.३२७) में कन्थक घोड़ों के चार भेद हैं। ७५. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीका, २, पृ. ११०-अ; उ. ध्य. टी. ३, पृ. ५७ अ; तथा देखिए रामायण १.६२८ ७६. बृ.क.भा., ३७४७ ७७. बृहत्कल्पभाष्य, गा. २०६६ ७८. वही, गा. ३९५९ ७९. वही, गा. ११२३ ८०. उत्तराध्ययन, गा. ३५६ ८१. बृ.क.सू.भा., गा. ५५९ ८२. वही, गा. ९४० व उसकी वृत्ति 'परिहीणकोशस्य च विनष्टमेव राज्यम्।' ८३. आव. चू. २.२०० ८४. अत्थुप्पत्तिहेतवो जो ते दूसेंतस्म अत्थुप्पत्तीण भवति, अत्यामावे कोसविहणो राया विणस्सति; -नि.चू., ३.४८० ८५. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ४७७० व इसकी वृत्ति; पिण्डनियुक्ति टीका, ८७, पृ. ३२ अ में प्रत्येक घर से प्रतिवर्ष दो द्रम्म लिए जाने का उल्लेख है। ८६. आव.निर्यु. १०७८ आदि, हरिभद्र टी. तथा देखिए मलयगिरि की टी. भी १०८३ ४, पृ.५९६१ कौटिल्य के अर्थशास्त्र २.६.२४.२ में बाईस प्रकार के राजकर बताये गये है। बृहत्कल्पभाष्य, की वृत्ति में भी १८ प्रकार के करों का उल्लेख किया गया है-बृहत्कल्पभाष्य, भाग-२, गा. १०८८ ८७. बृहत्कल्पभाष्य, गा. १०८८ ८८. नत्थेत्थ करो नगरं (ब्र.क.भा., भाग-२, गा. १०८९); अभयदेव, व्या. प्र. टी., ३.६, पृ. १०६) बेचरदास अनुवाद)। अभयदेव ने ग्राम का निम्नलिखित लक्षण किया है- ग्रसति बुद्धयादीन् गुणान् इति ग्रामः। यदि वा गम्यः शास्त्रप्रसिद्धानां अष्टादशकराणाम्। ८९. बृहत्कल्पभाष्य, गा. २५०६-७ ९०. संकादीपपरिसुद्धे, सइलामे कुणइ पणिओ विद -बृहत्कल्पभाष्य, भाग-२, गा. ९५२ ९१. कौटिल्य अर्थशास्त्र, २.६.२४

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