Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 105
________________ धार्मिक जीवन ९७ प्रस्तुत ग्रन्थ में भी हुआ है। कहा गया है कि जब ज्येष्ठ भ्राता ने यशोभद्रा के पति के ऊपर आक्रमण कर दिया तब वह श्रावस्ती के जंगल की ओर प्रस्थान कर गई और वहीं जैनसंघ में प्रव्रजित हो गई । २ उदारीकरण के बावजूद कुछ लोगों को जैनसंघ में शामिल किये जाने का निषेध किया गया है। पंडक, क्लीव और वातिज इसी प्रकार के लोग थे जिन्हें प्रव्रज्या के लिए अयोग्य बतलाया गया है। पंडक के छह लक्षणों की गणना भी की गई है - महिला स्वभाव, स्वरभेद, वर्ण-भेद, महन्भेद (प्रलम्ब अंगादान), मृदुवाक् और सशब्द और अफेनक मूत्र। पंडक के दो भेद बतलाये गये हैंदूषित पंडक और उपघात पंडक । दूषित पंडक के पुनः दो भेद बतलाये गये हैंआसिक्त और उपसिक्त। उपघात पंडक के भी दो भेद किये गये हैं- वेदोपघातपंडक और उपकरणोपघात पंडक । क्लीव के बारे में बतलाया गया है कि जिसे मैथुन के विचार मात्र से अंगादान में विकार उत्पन्न हो जाय और बीजबिन्दु गिरने लग जाय वह क्लीव है । वातिज उसे कहा गया है जिसकी मन:स्थिति ठीक नहीं होती है। बृहत्कल्पसूत्र में पंडक आदि को अपवाद स्वरूप दीक्षा देने का भी विधान किया गया है, परन्तु उनके रहन-सहन आदि की विशेष व्यवस्था करने की हिदायत दी गयी है। इस ग्रन्थ में पंडक, क्लीव और वातिज को न केवल प्रव्रज्या के लिए अयोग्य ठहराया गया है अपितु उन्हें मुंडन, शिक्षा, उपस्थापना, सहभोजन, सहवास आदि के लिए भी अनुपयुक्त बतलाया गया है। (बृ.क.सू.भा. ५१३८५१६७) इसी प्रकार दुष्ट, मूढ़ और व्युद्ग्राहित (विपरीत बोध में दृढ़) प्रव्रज्या के लिए अनधिकारी माने गये हैं और अदुष्ट, अमूढ़ और अव्युद्ग्राहित प्रव्रज्या, उपदेश आदि के लिए अयोग्य माने गये हैं। सम्मत्ते व अजोग्गा, किमु दिक्खण-वायणासु दुट्ठादी । दुस्सन्नप्पारंभो, मा मोह परिस्समो हो । स्थानांगसूत्र में तो ऐसे बीस कारणों का उल्लेख है जिसके आधार पर किसी स्त्री या पुरुष को संघ में प्रवेश से मना किया जा सकता था।' इन बीस कारणों में गर्भिणी को भी शामिल कर उसे दीक्षा से वंचित कर दिया गया है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि भाष्यकार के समय में जैनसंघ के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ाने के लिए और जैनधर्म के प्रचार-प्रसार के लिए परिस्थितिजन्य छूट दिये गये और अपवादों का विधान किया गया। केशी एक ऐसा ही बालक था जो भिक्षुणी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था।

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