Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 59
________________ ५० बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन १६१. बृहत्कल्पभाष्य, वृत्ति, भाग-१, पीठिका गा. ६४४। वात्स्यायन ने कामसूत्र में पाँच प्रकार के उत्सवों का उल्लेख किया है-विविध देवताओं सम्बन्धी उत्सव (समाज, यात्रा और घट), स्त्री-पुरुष की गोष्ठियाँ, आपानक, उद्यान-यात्रा और समस्याक्रीड़ा,सूत्र २६, पृ. ४४ १६२. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ३१७०-७१ १६३. वही, गा. १४५१ तथा देखिए वट्टक जातक, (११८), पृ. ३३ आदि। १६४. बृहत्कल्पभाष्य, भाग-२, गा. १८१४ १६५. वही, गा. ३२८५ तथा प्रथम उद्देश का अनुयोगद्वार। १६६. वही, गा. ४७१६छ। जीवाभिगम ३, पृ. २८०-अ; पियदसि के ९वें आदेशपत्र में पुत्र के विवाह को अवाह और कन्या के विवाह को विवाह कहा गया है; तथा दीघनिकाय १, अंबट्ठसुत्त, पृ. ८६ १६७. भोज्जं ति वा सखडित्ति वा एगटुं - वृ. क.भा., भाग- गाथा ३१९ की चू.। बृहत्कल्पभाष्य, भाग-३, गा. ३१४०; तथा नि.सू., ३.१४ को चूर्णि आचारांग, १६८. संखडिज्जति जहिं आउणि जियाणा, २.१.२ पृ. २९८-अ-३०४ १६९. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ३१४१-४२ १७०. वही, गा. ३१४३ १७१. वही, गा. ३१८४-८९; नि.भा., ३.१४७२-७७ १७२. वही, गा. ३१५० १७३. लाट देश में इसे वर्षा ऋतु में मनाते थे, -बृहत्कल्पभाष्य, गा. २८५५ १७४. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ४८८। तुलना कीजिए महाभारत, २.४३.२२; हरिवंशपुराण, २.१७.११ आदि १७५. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ३१९२ १७६. वही, गा. ३५८७ १७७. वही, गा. ४७६९ १७८. वही, गा. ५८३८ १७९. वही, गा. ३१५६ १८०. वही, गा. ३१६८-७० १८१. 'धर्मग्रहोऽपि वातविशेषो यः शरीरं कुब्जीकरोति,' -बृहत्कल्पभाष्य, गा. ३८१६ १८२. वही, गा. ५८७०

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