Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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सामाजिक जीवन
१३७. नेपालादिरूल्वणरोमा बृहत्कंबलः। १३८. यथामुखमध्ये यमलितो भयदंतपंक्तिरूपा दाढ़िकालि-दन्तावलीनिरीक्ष्यते एवं
धौतपोतिकाऽपि द्विजसलसदशवस्त्रपरिधानरूपा दृश्यमाना दाढ़िकालिखि प्रतिभाति। १३९. पूर्यते स्तोकरैपि तन्तुभिः पूर्णीभवतीति पूरिका-स्थूलशणगुणपयपटालिका यथा
धान्योगोणिका क्रियन्ते हस्ताधास्तरणानि वा। १४०. द्विसरसृपाटी १४१. बृहत्कल्पभाष्य, ३,३८२३ आदि तथा टीका १४२. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ३८२४; नि.भा.; १२.४००१-४००२ १४३. बृहत्कल्पभाष्य, गा. १८; बौद्धों के चुल्लवग्ग, ६.१, पृ. २४३ में इसे चिलमिलिका
कहा गया है। १४४. नि.भा., १.६५५-५६ १४५. बृहत्कल्पभाष्य, गा. २३७४ आदि, गा. ४८०४; ४८११, ४८१५; ४८१७ १४६. वही, गा. ८१७-८१९ १४७. वही, गा. २८८३ १४८. वही, गा. ५२२५ १४९. वही, गा. ३९९२ टीका १५०. वही, गा. ३९०-५। मूलसर्वास्तिवाद के विनयवस्तु पृ. ९५ में छन्नदश और दीर्घदश
का उल्लेख है। १५१. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ४२६८ १५२. वही, गा. ४३२३-४३२९ १५३. वही, गा. ४१०२ १५४. वही, गा. ३००१ १५५. वही, गा. २१७० १५६. वही, गा.२५५७; आचारांग २.२.९६; नि.चू., २, पृ. २६, ४.५२०४ १५७. वही, गा. २८८५; नि. चू. २.९१४ १५८. वही, गा. ३८६२ १५९. नि.चू. २.२८७ १६०. बृहत्कल्पभाष्य, गा. १५९८

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