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बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन
थे।१५० साध्वियों के रुग्ण हो जाने पर उनके लिए व्याघ्र (दीवि) और तरच्छ (व्याघ्र की एक जाति) के चर्म के उपयोग करने का विधान है।५१ कुत्ते के चमड़े का भी उल्लेख मिलता है।५२ प्रसाधन उद्योग
प्रसाधन उद्योग उस समय उन्नत पर था। द्रव्यों से सुगन्धित तेल, विलेपन तथा विविध शृंगारपरक प्रसाधन बनाने का वर्णन किया गया है।१५३ तेल उद्योग
उस समय सरसों, अलसी, एरण्ड, तिल तथा इंगुदी आदि के बीजों से तेल निकाला जाता था। अलाबु नामक पाल-लेप के सन्दर्भ में तेल के उपयोग का उल्लेख है।१५४ धातु उद्योग
धातुओं के उत्पत्ति-स्थान को 'आकर कहा गया है।१५५ खानों और उनसे निकलने वाले खनिज पदार्थों के सन्दर्भ से पता चलता है कि खनन क्रिया विस्तृत रूप से की जाती थी।१५६ खान खोदने वाले श्रमिक 'सितिखाना' कहे जाते थे।१५७ खनिज पदार्थों की भरमार थी। खनिजों में लोहा, तांबा, सीसा, चाँदी (हिरण्य, रूप्य), सोना (सुवर्ण), मणि, रत्न और वज्र उपलब्ध होते थे।१५८ लौह उद्योग
लोहे का काम करने वाले को 'लोहकार' या 'अयस्कार' कहा जाता था। लोहार कृषि के उपकरण यथा- हल, कुदाली, फरसा, दतियां आदि के साथ अन्य बहुत घर के काम आने वाली वस्तुएँ जैसे- कैंची, छुरियाँ, सूइयां, नखछेदनी आदि भी बनाते थे।१५९ लोहार प्रातः ही अपनी भट्ठी जलाकर अपना कार्य आरम्भ कर देते थे।१६० इस्पात बनाने के लिए लोहा ढाला जाता था। सूची (सूई) के उल्लेख से इस्पात की सूचना मिलती है।१६१ लुहारों (कम्मार=कर्मार) का व्यापार उन्नति पर था। लोहे की कीलें, डंडे और बेड़ियां, कवच, हथियार, आरिका नखार्चनी शस्त्रकोश आदि बनाये जाते थे।१६२ दन्तकर्म
हाथीदांत बहुत कीमती माना जाता था। हाथी-दाँत के लिए लोग हाथियों का शिकार करते थे। हाथी-दाँत की मूर्तियाँ भी बनायी जाती थीं।१६३