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राजनैतिक जीवन
के लिए अयोग्य होता है। धर्मशास्त्रों में भी राजा में इन अवगुणों के होने की आलोचना की गई है। उत्तराधिकार
उत्तराधिकार का प्रश्न बड़ा जटिल और गम्भीर होता था। सामान्यतया राजा के ज्येष्ठ पुत्र को ही राजगद्दी का उत्तराधिकारी बनाया जाता था। परन्तु दुर्भाग्य से यदि पुत्रविहीन राजा की मृत्यु हो जाय तो मंत्रियों की सलाह से धर्मश्रवण आदि के बहाने स्वस्थ साधुओं को राजप्रासाद में आमंत्रित कर उनके द्वारा सन्तानोत्पत्ति करायी जाती थी। उत्तराधिकारी खोज निकालने के लिए यथासम्भव सभी प्रकार के उपाय काम में लाये जाते थे। इस सम्बन्ध में बृहत्कल्पभाष्य में एक मनोरंजक कथा आती है। किसी राजा के तीन पुत्र थे। तीनों ने श्रमणदीक्षा ग्रहण कर ली थी। कुछ समय बाद राजा की मृत्यु हो गयी। मंत्रियों ने राजलक्षणों से युक्त किसी पुरुष की खोज करना आरम्भ किया, लेकिन सफलता न मिली। इतने में पता चला कि उक्त तीनों राजकुमार मुनिवेष में विहार करते हुए नगर के उद्यान में ठहरे हुए हैं। मन्त्रीगण, छत्र, चामर, खड्ग आदि उपकरणों के साथ उद्यान में पहुंचे। राजपद स्वीकार करने के लिये उन्होंने तीनों से निवेदन किया। पहले ने दीक्षा त्यागकर संसार में पुनः प्रवेश करने से इनकार कर दिया, दूसरे को आचार्य ने साध्वियों के किसी आश्रम में छुपा दिया। तीसरे ने श्रमणजीवन का पालन करने में असमर्थ होने से राजपद स्वीकार कर लिया। ___उस समय उत्तराधिकारी चुनने का एक और तरीका था जो व्यवहारभाष्य में दिया हुआ है। नगर में एक घोड़ा घुमाया जाता था। जिसके पास वह घोड़ा पीठ करके रुक जाता था उसे राजगद्दी पर बैठा दिया जाता षा। इस संदर्भ में मूलदेव का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। कहा गया है कि जब चोरी के अपराध में मूलदेव को फाँसी देने के लिए ले जाया जा रहा था उसी समय वहाँ के पुत्रविहीन राजा की मृत्यु हो गई। परंपरा के अनुसार घोड़े को नगर में घुमाया गया, घोड़ा मूलदेव की ओर पीठ करके खड़ा हो गया और मूलदेव को फाँसी ने देकर राजगद्दी पर बैठा दिया गया।
राजभवन
जैन आगमों में राजाओं के निवास के लिए बनाये गये महल को राजभवन कहा गया है जब कि देवताओं के निवास वाली इमारत को प्रासाद कहा गया