________________
राजनैतिक जीवन
८३
अन्तःपुर की रानियों में परस्पर घृणा होती थी। इसके कारण वे एक दूसरे के पुत्रों से भी ईर्ष्या करती थीं। ईर्ष्या के कारण ही कुणाल की सौतेली माँ ने षडयन्त्र से अपने सौतेले पुत्र की आँखें निकलवा ली थीं।२७
शासन-व्यवस्था
शासन व्यवस्था के अन्तर्गत राज्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए राजा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती थी। राजा को सहायता प्रदान करने हेतु मंत्री-परिषद् के साथ-साथ कई अन्य अधिकारी होते थे। इन अधिकारियों के द्वारा सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित हो सकी। केन्द्रीय शासन
प्रशासनिक कार्यों को सुचारु रूप से चलाने के लिए मंत्रिपरिषद् का गठन किया जाता था। मंत्रिपरिषद में तीन, पाँच अथवा सात विशिष्ट व्यक्ति होते थे।१८ निशीथचूर्णि के अनुसार इसमें राजा, युवराज, अमात्य, श्रेष्ठी, पुरोहित, सेनापति
और सार्थवाह होते थे।१९ लेकिन बृहत्कल्पभाष्य में इस प्रकार की कोई सूची प्राप्त नहीं होती है। उसमें तो निम्न प्रकार के पाँच परिषदों का उल्लेख हुआ हैपूरन्ति, छत्तन्ति, बुद्धि, मन्त्रि और रहस्यिका।
पूरंती छत्तंतिय, बुद्धि मंती रहस्सिया चेव । पंच विहा खलु परिसा, लोइअ लोउत्तरा चेव ।। (बृ.क.सू.भा. ३७८)
राजा जब यात्रा हेतु बाहर जाता और जब तक वापस लौटकर न आ जाता, तब-तक राजकर्मचारी उसकी सेवा में उपस्थित रहते थे। इस परिषद् को पूरन्ति परिषद् कहा जाता था। छत्तन्ति परिषद् के सदस्य राजा के सिर पर छत्र से छाया करते थे और राजा की बाह्यशाला तक ही प्रवेश कर सकते थे। बुद्धि परिषद् के सदस्य लोक, वेद और शास्त्र के पण्डित होते थे। लोक प्रचलित अनेक प्रवाद उनके सामने प्रस्तुत किये जाते थे जिनकी वे छानबीन करते थे। मंत्रि-परिषद् के सदस्य राजशास्त्रों के पण्डित होते थे और उनके पैतृक वंश का राजकुल से सम्बन्ध नहीं होता था। ये राज्य का हित चाहने वाले वयोवृद्ध तथा स्वतंत्र विचारों के होते थे और राजा के साथ एकान्त में बैठकर मंत्रणा करते थे। पाँचवी परिषद् का नाम रहस्सिया परिषद् था। यदि कभी रानी राजा से रूठ जाती हो तो इसके सदस्य उसे शान्त करते थे। वे रानी के रजस्वला होने के बाद स्नान की सूचना, विवाह योग्य राजकुमारी की सूचना और रानी के गुप्तप्रेमालाप की सूचना राजा को देते थे।२० इनके सहयोग से राजा राज्य के विविध कार्यों का संपादन करता था।