________________
६४
बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन
'बृहत्कल्पभाष्य' से ज्ञात होता है कि दन्तपुर के राजा ने अपने राज्य से हाथी दाँत के निर्यात का निषेध कर दिया था।१३१ 'बृहत्कल्पभाष्य' से पता चलता है कि कुत्रिकापण में एक निष्क मूल्य वाले वर्तन भी बेचे जाते थे।१३२ उद्योग-धन्धे
'बृहत्कल्पभाष्य' में कृषि के अतिरिक्त विभिन्न उद्योग-धन्धों का वर्णन मिलता है। ये उद्योग-धन्धे समाज के लोगों की आजीविका के साधन थे। भिन्नभिन्न धन्धों में संलग्न व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न नाम दिया गया है जैसे- कुम्भकार, चित्रकार, चर्मकार, मद्यविक्रेता, स्वर्णकार आदि। इसी प्रकार विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के निर्माण संबंधी उद्योग भी थे यथा धातु उद्योग, तेल उद्योग, वस्त्र उद्योग, काष्ठ उद्योग आदि। कताई और बुनाई
कृषि के पश्चात् कताई-बुनाई लोगों का महत्त्वपूर्ण धन्धा था। पाँच शिल्पकारों में कुम्भकार, चित्रकार, लुहार (कर्मकार) और नाई (काश्यप) के साथ वस्त्रकार भी गिनाये गये हैं। इसके अलावा कपड़ धोने और रंगने का भी काम किया जाता था। अट्ठारह श्रेणियों में धोबियों की गणना की गयी है। मैले कपड़ों को पत्थर पर पीटा जाता था फिर उन्हें घिसा जाता था। जब कपड़े धुलकर साफ हो जाते तो उन्हें धूप देकर सुगन्धित किया जाता था।१३३ तौलिये आदि वस्त्रों को कषायरंग से रंगा जाता। रंगे हुए वस्त्र गर्म मौसम में पहने जाते थे।९३४ वस्त्र निर्माण के केन्द्र
वस्त्र निर्माण हेतु कुछ स्थल बहुत प्रसिद्ध थे। 'बृहत्कल्पभाष्य' में उत्तरापथ और दक्षिणापथ के व्यापारियों द्वारा परस्पर वस्त्रों के विनिमय का वर्णन मिलता है।१३५
सूती वस्त्र
उस समय वस्त्र निर्माण के लिये कपास का सबसे अधिक उपयोग किया जाता था। सूत को फैलाकर ताना-बाना किया जाता था, फिर 'कडजोगी १३६ (वस्त्र बुनने का एक उपकरण) से 'तन्तुवायशाला' में वस्त्र तैयार किया जाता था। 'बृहत्कल्पभाष्य से स्त्रियों द्वारा सूत कातने का प्रमाण मिलता है।१३७ बृहत्कल्पभाष्य और निशीथचूर्णि के अतिरिक्त वस्त्रों का पर्याप्त उल्लेख स्थानांगवृत्ति में भी मिलता