Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 60
________________ सामाजिक जीवन १८३. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ३९०७ १८४. वही, गा. ४३८० १८५. वही, पीठिका गा. ३७६ १८६. वही, गा. १२७७ ५१ १८७. बृहत्कल्पभाष्य, गा. १००१-१०३३ १८८. 'जंघासु कालाभं रसियं वहति' - नि. चू. १.७९८ की चू. १८९. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ३८३९-४० । महावग्ग, १.३०-८८, पृ. ७६ में उल्लेख है कि मगध में कुष्ठ, गंड (कोड़ा), किलास (चर्मरोग), सूजन और मृगी रोग फैल रहे थे। जीवक कौमारभृत्य को लोगों की चिकित्सा करने का समय नहीं मिलता था, इसलिए रोग से पीड़ित लोग बौद्ध भिक्षु बनकर चिकित्सा कराने लगे। १९०. वही, गा. ३८१६ - १८ । चर्म के उपयोग के लिये देखिये सुश्रुतसंहिता, सूत्रस्थान, ७.१४, पृ. ४२ १९९. वही, गा. ५९८६ १९२ . वही, गा. ५९८७-८८ १९३. वही, गा. ६०२८-३१, २९९५; निशीथचूर्णिपीठिका, ३४८; १०.३१९७ १९४. वही, गा. ३२५९ १९५. बृहत्कल्पभाष्य, गा. १०५१ । शल्यचिकित्सा के लिये देखिये सुश्रुत, सूत्रस्थान, २६.१३, पृ. १६३ १९६. वही, गा. ६२६२ । तथा देखिये चरकसंहिता, शरीरस्थान २, अध्याय ९, पृ. १०८८ १९७. वही, पीठिका गा. २८९ १९८. वही, ६०२८-३१, गा. २९९५ १९९. वही, गा. १२३५, निशीथचूर्णि ११.३७१३ २००. वही, गा. २८७३-७४

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