Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 68
________________ आर्थिक जीवन ५९ सार्थ में बिना किसी भेदभाव के सब मतों के साधुओं को भोजन मिलता था। एक अच्छा सार्थ बिना राजमार्ग को छोड़े हुए धीमी गति से आगे बढ़ता था। रास्ते में भोजन के समय वह ठहर जाता था और गन्तव्यस्थान पर पहुंचकर पड़ाव डाल देता था।७९ वह इस बात के लिए भी सदा प्रयत्नशील रहता था कि वह उसी सड़क को पकड़े जो गाँवों और चारागाहों से होकर गुजरती हो। वह पड़ाव भी ऐसी जगह डालने का प्रयत्न करता था, जहाँ साधुओं को आसानी से भिक्षा मिल सके। सार्थ के साथ यात्रा करने वालों को एक अथवा दो सार्थवाहों की आज्ञा माननी पड़ती थी। उन दोनों सार्थवाहों में एक से भी किसी प्रकार अनबन होने पर यात्रियों का सार्थ के साथ यात्रा करना उचित नहीं माना जाता था। यात्रियों के लिए भी यह आवश्यक था कि वे उन शकुनों और अपशकुनों में विश्वास करें, जिन्हें सारा सार्थ मानता हो। सार्थवाह द्वारा नियुक्त चालक की आज्ञा मानना भी यात्रियों के लिए आवश्यक था। सार्थों के साथ साधुओं की यात्रा बहुत सुखकर नहीं होती थी। कभी-कभी उनके भिक्षाटन पर निकल जाने पर सार्थ आगे बढ़ जाता था और उन्हें भूखेप्यासे इधर-उधर भटकना पड़ता था।८२ सार्थ के दूसरे सदस्य तो कहीं भी ठहर सकते थे, पर जैन साधुओं को इस सम्बन्ध में कुछ नियमों का पालन करना पड़ता था। यात्रा की कठिनाइयों को देखते हुए इन नियमों का पालन करना बड़ा कठिन था। सार्थ के साथ सन्ध्या समय, गहरे जंगल से निकलकर जैन साधु अपने लिए विहित स्थान खोजने में जुट जाते थे और ठीक जगह न मिलने पर कुम्हारों की कर्मशाला अथवा दुकानों में पड़े रहते थे।३ ___ 'बृहत्कल्पभाष्य' में भिखमंगों के सार्थ का भी उल्लेख है। खाना न मिलने पर ये भिखमंगे कन्द, मूल, फल आदि खाकर अपना गुजारा कर लेते थे परन्तु जैन साधुओं के लिए ये सब अभक्ष्य होने से भिखमंगे उन्हें डराते भी थे। वे भिक्षुओं को एक लम्बी रस्सी दिखाकर कहते थे कि अगर तुम कन्द, मूल, फल नहीं खाओगे तो हम तुम्हें फाँसी पर लटकाकर सुखपूर्वक भोजन करेंगे।४ व्यापारिक मार्ग स्थल मार्ग 'बृहत्कल्पभाष्य' में व्यापारिक मार्गों का भी उल्लेख हुआ है। व्यापारिक मार्गों में चोर-डाकुओं का आतंक रहता था। अतएव यात्रियों की सुरक्षा के लिए

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