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आर्थिक जीवन
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व्यापारिक मार्ग घने जंगलों से होकर निकलते थे जिससे चोर, डाकुओं का भय सदैव बना रहता था। जिस सार्थ में बहुमूल्य वस्तुएँ होती थीं उसके लुटने का भय और भी बढ़ जाता था। ऐसे सार्थ में साधुओं के जाने का निषेध था।६५ बृहत्कल्पभाष्य में ऐसे वणिक् का उल्लेख हुआ है जिसने पागल का भेष बनाकर अपने रत्नों की रक्षा की थी।६६ जंगली जानवरों और चोर डाकुओं से सुरक्षा के लिए सार्थ के लोग रात में अपने चतुर्दिक घेरा-सा बना लेते थे और आग भी जला लेते थे। घेरे का प्रबंध न होने पर साधुओं को यह अनुमति थी कि कंटीली झाड़ियों का बाड़ा स्वयं तैयार कर लें। वे चोरों को डराने के लिये अपनी निडरता और वीरता की डींगे मारते और रात भर जागते रहते थे जिससे चोर उनकी बातें सुनकर भाग जायें लेकिन सचमुच ही चोर-डाकू आ जाते तो सार्थ छिन्न-भिन्न हो जाते थे।६७ जंगली पशुओं अथवा डाकुओं द्वारा सार्थ के नष्ट कर दिये जाने पर अगर साधु विलग हो जाते थे तो सिवाय देवताओं की प्रार्थना के उनके पास कोई उपाय नहीं रह जाता था।६८ ज्ञाताधर्मकथा में भी सार्थवाहों द्वारा सार्थ को लेकर देश-विदेश में व्यापार के लिए जाने का प्रमाण मिलता है। उसमें वर्णित धन्य सार्थवाह ने व्यापार यात्रा में जाने से पूर्व अपने सभी संबन्धियों को विपुल मात्रा में असन, पान, खाद्य और स्वाद्य चार प्रकार का भोजन कराया था। उसने सार्थ में सम्मिलित होने के लिए लोगों को आमंत्रित करते हुए घोषणा की थी कि सार्थ में चलने वाले प्रत्येक व्यक्ति को भोजन, जलपात्र, जूते, औषधि तथा अन्य सामग्रियाँ उपलब्ध करायी जायेंगी।६९ शुभ नक्षत्र, तिथि एवं राजा की आज्ञा प्राप्तकर सार्थ की घोषणा की जाती थी। सार्थवाह के ऊपर पूरे सार्थ में सुरक्षा का दायित्व था। 'ज्ञाताधर्मकथा' के अनुसार हस्ति शीर्ष नगर के व्यापारी (पोतवणिक) कलिका द्वीप, जजीवा तक अर्थात् पूर्वी अफ्रीका के जंजीवार तक जाया करते थे।७० 'वसुदेवहिण्डी' से ज्ञात होता है कि उस समय व्यापारी चीन, रत्नद्वीप, स्वर्णद्वीप, सुमात्रा, जावाद्वीप आदि देशों तक यात्रा करते थे।
'बृहत्कल्पसूत्रभाष्य' में सार्थ के पाँच प्रकारों का उल्लेख मिलता है- (१) मंडीसार्थ- माल ढोने वाले सार्थ; (२) बहलिका- इसमें ऊँट, खच्चर, बैल इत्यादि होते थे; (३) भारवह- इसमें लोग स्वयं अपना माल ढोते थे; (४) औदारिकयह उन मजदूरों का सार्थ होता था जो जीविका के लिए एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते थे; (५) कांटिक- इसमें अधिकतर भिक्षु और साधु होते