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बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन
राज्य की ओर से गौल्मिक जैसे राजपुरुष नियुक्त किये जाते थे।५ कभी-कभी मार्गों की रक्षा करने वाले राज्याधिकारी साधुओं को भी चोर समझकर पकड़ लेते थे।८६ एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवेश करने के लिये आज्ञा-पत्र लेने पड़ते थे। विशेषरूप से रात में यात्रा करने वालों को अपना आज्ञा-पत्र दिखाना पड़ता था। आज्ञापत्ररहित पुरुष चोर समझकर पकड़ लिया जाता था।८ बोझा ढोने वाली गाड़ी को 'शकट' या 'सग्गड़' कहा जाता था। ऐसी गाड़ियों में बैल जोते जाते थे।८९ 'बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि आभीर शकटों में घी के घड़े रखकर नगरों में बेचने के लिये जाते थे।
जैन साहित्य में जैन साधुओं के विहार योग्य २५% आर्य देशों का उल्लेख हुआ है। मगध, अंग, बंग, कलिंग, कोशल, सौराष्ट्र, कुरु, कुशावर्त, पंचाल,जांगल देश, विदेह, वत्स, सडिब्बा, मलया, वच्छ (मत्स्य), अच्छा, दसन्ना, चेदि, सिन्धु, सौवीर, शूरसेन, भंग, कुणाल, लाढ, कैकयार्थ। ये देश जल और स्थल मार्गों द्वारा जुड़े हुए थे।९१
प्राचीन काल के अनेक गाँव और नगर सड़कों से जुड़े होते थे। जहाँ तीन ओर से सड़कें आकर मिलती थीं उसे 'शृगादक' (तिराहा) जहाँ चार ओर से सड़कें आकर मिलती थीं उसे 'प्रवह' कहा जाता था।९२ __साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि प्राचीन भारत के समीपस्थ स्थानों तक आवागमन के लिये पर्याप्त सुविधा थी, किन्तु दूरस्थ स्थानों को जाने वाले मार्ग सुरक्षित नहीं थे। देश का अधिकांश भाग बनप्रदेश था और उन्हीं से होकर सड़कें गुजरती थीं। सड़कें कच्ची और धूल-धूसरित थीं जिन पर चलना अत्यन्त कठिन था।९३ नदी नालों पर पुल प्रायः नहीं होते थे, केवल नावों से ही नदी पार करनी पड़ती थी।९४
जैन साहित्य से ज्ञात होता है कि सम्पूर्ण भारत जल और स्थल मार्गों से जुड़ा हुआ था। इनमें से कुछ मार्ग तो मध्य एशिया और पश्चिम एशिया तक जाते थे।९५
पाटलिपुत्र से काबुल-कन्दहार जाने वाले मार्ग को उत्तरापथ कहा जाता था। पाटलिपुत्र के राजा मुरुण्ड का दूत इसी मार्ग से पुरुषपुर (पेशावर) गया था।६ मिथिला के यात्री भी पुरुषपुर तक जाते थे।९७ 'वसुदेवहिण्डी' से सूचना मिलती है कि कौशाम्बी से उज्जैनी जाने वाला मार्ग बड़ा भयानक था, क्योंकि इस मार्ग में पड़ने वाले घने जंगल होते थे जहाँ दृष्टिविषसर्प, क्रूर बाघ, जंगली