Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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सामाजिक जीवन
३७. बृहत्कल्पभाष्य, पीठिका गा. १४६; तथा व्यवहार भाष्य ५.१३९ ३८. जम्बूद्वीप्रज्ञप्ति, ३.६७; उत्तराध्ययनटीका १८, पृ. २४७-। देखिए- दीघनिकाय
१, अम्बट्ठसुत्त पृ. ७७। यहाँ चक्क, हत्थि, अस्स, मणि, इत्थि, गृहपति और
परिणायक रत्नों का उल्लेख है। ३९. ज्ञाताधर्मकथा ८; कल्पसूत्रटीका, २, पृ. ३२ अ-४२ । ४०. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ४३४८ ४१. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ४३४९ ४२. वही, पीठिका गा. १७२, पृ. ५८ ४३. वही, गा. २६३४ ४४. वही, गा. ८२५ ४५. निशीथचूर्णि, ११.३६७६। मनुस्मृति (८.४१५) में सात प्रकार के और
याज्ञवल्क्यस्मृति (१४, पृ. २४९) में १४ प्रकार के दास गिनाये गये हैं। अर्थशास्त्र
(३.१३.१-४९), पृ. ६५) इत्यादि में भी दासों के सम्बन्ध में विवेचन मिलता है। ४६. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ६३०१-९ ४७. ज्ञाताधर्मकथा ६, पृ. ८४। अन्य प्रकारों में पशुभक्त, मृतकभक्त, कांटारभक्त,
दुर्भिक्षभक्त, दमगभक्त, ग्लानभक्त आदि का उल्लेख है- नि. सू., ९.६ ४८. मधुसेन, ‘ए कल्चरल स्टडी आफ दी निशीथचूर्णि, पृ. १२४ ४९. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ३२४० ५०. वही, गा. २४४५ ५१. वही, गा. ३४७६ ५२. वही, गा. ३४७६ ५३. वही, गा. ३२८९ ५४. वही, गा. २४३४ ५५. वही, गा. ३४७५ ५६. वही, गा. ५९९७ व ६०३२ ५७. वही, गा. ५९९७-६०-३२ ५८. वही, गा. ८५२ ५९. वही, गा. ३६१७

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