Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन
६०. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ६०४७ व ५९ ६१. वही, गा. १६१३; नि. चू., २.१६५५ ६२. नि.चू., ३.४८३७ ६३. नि.चू., ३.२०२५; उपासकदशांग, १.२९ ६४. वही, ३.४४९५ ६५. 'अंतरिज्ज वा उत्तरिज्ज' - वही, पीठिका गा. ७१० ६६. नि.भा., ९.२५३५; व्यवहार भा., १०.४८५ ६७. बृहत्कल्पभाष्य, पृ. ३६२, गा. ३५३९ ६८. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ. १९८ ६९. कल्पसूत्र, ९.१७ में विधान है कि पूर्यषण पर्व में स्वस्थ जैन भिक्षु और भिक्षुणियाँ
दूध, दही, नवनीत, घी,तेल, गुड़, मद्य, मधु और मांस का सेवन न करें। मद्यजन्य दोषों के लिए देखिए। -नि.चू.पीठिका १३१; कुंभजातक, (५१२), ५,पृ.
१०२-१०९ ७०. बृहत्कल्पभाष्य वृत्ति, गा. ३४१३ ७१. वही, गा. ६०३५ पर वृत्ति आदि। ७२. वही, गा. ३४१२ ७३. वही, भाग-४, गा. ३४१२ ७४. वही, गा. २९०६-११; निशीथचूर्णिपीठिका पृ. १४९ ७५. वही, गा. १२३९, २९०६ ७६. वही, ५११२-१३, ५११६ ७७. वही, गा. २६८१ संयोजनाधिकरण, नि.चू., ४, पृ. २८१ ७८. निशीथचूर्णिपीठिका, ४९० ७९. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ५९८२ ८०. वही, गा. २७४४ ८१. वही, गा. २७४६ ८२. वही, गा. ४८०९ ८३. वही, गा. ४६३३ ८४. वही, गा. २५०८

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