Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ ४० बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन में चोर, श्वापद आदि से व्याघात होने का भय रहता है। इसमें प्रमत्त हुई चटिका और तापसी आदि भिक्षुणियों द्वारा ब्रह्मचर्य भंग होने की आशंका बनी रहती है।१७१ संखडि अनेक स्थानों पर मनायी जाती थी। आनन्दपुर के निवासी सरस्वती नदी के पूर्वाभिमुख प्रवाह के पास शरद ऋतु में यह मनाते थे।१७२ गिरियज्ञ आदि१७३ जैसी सायंकाल मनायी जाने वाली संखडि में रात्रि को भोजन किया जाता था और प्रातःकाल सूर्योदय के समय दुग्धपान आदि का रिवाज था।१४ उज्जयंत और सिद्धशिला आदि सम्यक्त्व-भावित तीर्थों पर प्रतिवर्ष संखडि मनायी जाती थी।१५ शय्यातर (गृहस्वामी) की देवकुलिका ७६ के और नये घर के व्यंतर को प्रसन्न करने के लिए भी संखडि मनायी जाती थी।१७७ 'बृहत्कल्पभाष्य' में एक जगह उल्लेख है कि गिरिनार, आबू, प्रभास आदि तीर्थों पर संखडि का उत्सव मनाया जाता था जिसमें शाक्य, परिव्राजक आदि अनेक साधु आते थे। उसमें लोग दूर-दूर से आकर सम्मिलित होते थे और खूब खा-पीकर विकाल में पड़े सोते रहते थे।१७८ जैन श्रमणों को यथासंभव संखडियों में जाने का निषेध है। संखडि में उपस्थित जैन श्रमणों को देखकर लोग यह भी कह देते थे कि रुक्ष भोजन से ऊबकर अब ये यहाँ आये हैं और उससे प्रवचन का उपहास होता था।१७९ संखडि के समय कुत्तों द्वारा भोजन अपहरण किये जाने की और चोरों के उपद्रव की आशंका रहती थी। ऐसे अवसरों पर उन्मत्त हुए लोग विविध प्रकार के वस्त्राभूषणों से अलंकृत हो अनेक अभिनयों से पूर्ण शृंगार रस के काव्य पढ़ते थे और मत्त हुए स्त्री-पुरुष विविध प्रकार की क्रीड़ाएँ करते थे।१८० औषधि एवं चिकित्सा प्राचीन भारत में आयुर्वेद को जीवन का विज्ञान और कला कहा गया है। इसमें रोगनाशक औषधि और 'शल्यक्रिया' से संबंधित औषधियां सम्मिलित की जाती हैं। चिकित्सक को वैद्य कहा गया है। रोगों में दुब्भूय (दुर्भूत - ईति; टिड्डी दल द्वारा धान्य को हानि पहुँचाना), कुल रोग, ग्रामरोग, नगररोग, मंडलरोग, शीर्षवेदना, दंतवेदना, खसर (खसरा), पांडुरोग, एक-दो-तीन-चार दिन के अन्तराल से आने वाला ज्वर, इन्द्रग्रह, धनुर्ग्रह,१८१ यक्षग्रह, भूतग्रह, वल्गुली१८२ (जी मिचलना), विषकुंभ (फुडिया)१८३ आदि का उल्लेख है। कहा गया है कि पुरीष के रोकने से मरण, मूत्र के निरोध से दृष्टिहानि और वमन के निरोध से कुष्ठरोग की उत्पत्ति होती है।१८४

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146