Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 36
________________ सामाजिक जीवन २७ पुरुष के अपनी स्त्रियों के सतीत्व के विषय में शंकास्पद होने का उल्लेख भी प्राप्त होता है। एक बार राजा श्रेणिक भगवान् महावीर की वन्दना करके सायंकाल के समय घर लौट रहे थे। माघ का महीना था। मार्ग में चेल्लणा ने एक साधु को प्रतिमा में स्थित देखा। घर जाकर वह सो गयी। रात को सोतेसोते उसका हाथ नीचे लटक गया और वह ठंड से सुन्न हो गया। इससे चेल्लणा के सारे शरीर में शीत व्याप्त हो गयी। यह देखकर रानी के मुँह से अचानक ही निकल पड़ा- 'उस बेचारे का क्या हाल होगा'? राजा ने समझा अवश्य ही रानी ने किसी पर पुरुष को आने का संकेत दे रखा है। क्रोध में आकर उसने अभयकुमार को अन्तःपुर में आग लगा देने का आदेश दिया। उसके बाद अपनी शंका की निवृत्ति के लिए श्रेणिक ने भगवान् महावीर के पास पहुँचकर प्रश्न किया- 'महाराज चेल्लणा का एक पति है या अनेक? महावीर ने उत्तर दिया'एक'। यह सुनकर श्रेणिक तुरन्त ही वापस लौटा। आते ही उसने अभयकुमार से पूछा- क्या तुमने अन्तःपुर में आग लगवा दी'? अभय कुमार ने कहा- 'हाँ महाराज'। श्रेणिक ने कहा- 'तुम भी उसमें क्यों न जल मरे'? अभय ने उत्तर दिया- 'महाराज, मैं तो यह सब कांड देखकर प्रवज्या लेने जा रहा हूँ।'४२ दास-प्रथा प्रस्तुत ग्रन्थ में दास-प्रथा का वर्णन मिलता है। दास-प्रथा का उस समय चलन था। दास और दासी घर का काम-काज करते हुए अपने मालिक के परिवार के साथ ही रहते थे। घर में काम करने वाले नौकर-चाकरों में कर्मकर (कम्मकर), घोट (चट्ट), प्रेष्य (पेस), भृतक पुरुष और गोपालकों का उल्लेख मिलता है।४३ दास और दासी की गणना दस प्रकार के परिग्रहों में की गयी है।४ निशीथचूर्णि में छह प्रकार के दास बताये गये हैं- कुछ लोग जन्म से ही दासवृत्ति करते थे (गर्भ), कुछ को खरीदा जाता था (क्रीट), कुछ ऋण न चुका सकने के कारण दास बना लिये जाते थे (ऋणक), कुछ दुर्भिक्ष के कारण दासवृत्ति करते थे, कुछ जुर्माना आदि न दे सकने के कारण दास बन जाते थे और कुछ कर्ज न चुका सकने के कारण बन्दीगृह में डाल दिये जाते थे।७५ बृहत्कल्पभाष्य में उल्लेख है कि ऋणग्रस्त होने पर दासों को दासवृत्ति स्वीकार करनी पड़ती थी। ऐसा व्यक्ति यदि दीक्षा ग्रहण करना चाहे तो उसे दीक्षा का निषेध था। ऐसे व्यक्ति को यदि कहीं परदेश में दीक्षा दे दी जाये और साहूकार उसे पहचान ले और अपने घर ले जाना चाहे तो आचार्य को

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