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२८ बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन अपने दीक्षित शिष्य के स्वर में परिवर्तन कर, विद्या, मंत्र और योग-बल से उसकी रक्षा करे। यह सम्भव न होने पर विद्या आदि के बल से धन कमाकर
और उसका कर्ज चुकाकर दीक्षित साधु को दासवृत्ति से मुक्त करने का विधान किया गया है।
अन्न-पान
जीवन की मुख्य आवश्यकताएँ हैं भोजन, वस्त्र और रहने के लिये घर। चार प्रकार के भोजन का उल्लेख 'जैनसूत्रों में उपलब्ध होता है- अशन, पान, खाद्य (खाइम), और स्वाद्य (साइम)।७ उबाले गये पदार्थों को अशन (चावल आदि), पेय पदार्थों को पान (सुरा आदि), चबाकर खाने को खाद्य (फल आदि) और स्वाद के लिए खाये पदार्थों को स्वाद्य (शक्कर, पान आदि) कहते हैं।४८ बृहत्कल्पभाष्य में सभी तरह के पदार्थों का उल्लेख मिलता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में ब्रीहि ९ का वर्णन है जिससे प्रतीत होता है कि लोग चावल को उबालकर खाते थे। एक जगह पक्वान्न का उल्लेख भी हुआ है।५° एक स्थान पर पूर्य का उल्लेख हुआ है जिसे सम्भवतः गेहूँ को भूनकर तैयार किया जाता था। इसी प्रकार मोरण्डक भी बनाया जाता था। लोग दूध और दूध के बने पदार्थ यथा दही, नवनीत,५३ घी,५४ श्रीखण्ड'५ आदि का भी प्रयोग करते थे। लोग बेल का भी पर्याप्त प्रयोग करते थे।५६ एक जगह फाणिय का उल्लेख है जो ईख के रस से बना एक प्रकार का राब होता था। फलों में ताड़, नारियल, कैथ, आँवला और आम का उल्लेख है और शाक-सब्जियों में लौकी का उल्लेख है।५८ मिष्ठान्नों में आहडिया का उल्लेख है जिसे उपहार के रूप में दूसरों के घर भी भेजा जाता था।५९ 'बृहत्कल्पभाष्य' में एक विशिष्ट प्रकार के भोजन का उल्लेख किया गया है जिसे पुलाक कहा गया है। इसके तीन प्रकार भी बताए गए हैं- धान्यपुलाक, गंधपुलाक
और रसपुलाक। यह बहुत सरस एवं गरिष्ठ भोजन होता था। इसीलिए जैन निर्ग्रन्थियों को निर्देश दिया गया है कि जिस दिन उन्हें पुलाक प्राप्त हो जाय उस दिन उन्हें उससे ही संतोष कर लेना चाहिए लेकिन भूख लगने पर यदि क्षुधा शान्त न हो तो दुबारा भिक्षा के लिए वे जा सकती हैं।६० दाल और सब्जियों को घी से स्निग्ध करके स्वादिष्ट बनाने के लिए हींग और जीरे का छौंक दिया जाता था।६१ 'निशीथचूर्णि' से ज्ञात होता है कि भोजन में सुपाच्य और पौष्टिक सब्जियों की प्रधानता थी।६२ सम्पन्न लोग कलमशालि का आहार करते थे।६३ निशीथचूर्णि से ज्ञात होता है कि एक निर्धन स्त्री के घर कोदव का ही भोजन