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बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन
नन्दनवन था जिसमें सुरप्रिय नामक यक्ष का एक मंदिर था। रैवतक (उज्जयंत) पर्वत अनेक पक्षी, लताओं आदि से सुशोभित था। यहाँ पानी के झरने थे६८ और लोग प्रतिवर्ष संखडि मनाने के लिए एकत्रित होते थे। यहाँ भगवान अरिष्टनेमि ने निर्वाण प्राप्त किया था,६९ इसलिए इसकी गणना सिद्धक्षेत्रों में की जाती है।
इन्द्रपद
इस पर्वत का दूसरा नाम अजाग्रपदगिरि था। यह पर्वत चारों ओर गाँवों से घिरा हुआ था।° आवश्यकचूर्णि में भी इस पर्वत का उल्लेख मिलता है। उसमें कहा गया है कि भगवान महावीर ने यहाँ राजा दशार्णभद्र को दीक्षा दी थी। दशार्णपुर के उत्तरपूर्व में दशार्णकूट नाम का पर्वत था जिसका दूसरा नाम अजाग्रपद गिरि अथवा इन्द्रपद भी था।७१ अब्बुय (अर्बुद् -आबू)
यह जैनों का एक महत्त्वपूर्ण प्राचीन तीर्थ स्थल है। यह राजस्थान के सिरोही जिला में स्थित है। प्राचीन काल में यहाँ संखडि का पर्व मनाया जाता था।७२ यहाँ ऋषभनाथ और नेमिनाथ के विश्वविख्यात मंदिर हैं। इनमें से एक १०३२ ई. में विमलशाह का और दूसरा १२३२ ई. में तेजपाल का बनवाया हुआ है।
नदी
गंगा
__ भरह क्षेत्र के पाँच प्रमुख नदियों में गंगा भी एक महत्त्वपूर्ण नदी थी। बृहत्कल्पभाष्य में गंगा नदी का एक बड़ी नदी के रूप में उल्लेख मात्र किया गया है। जिन पांच नदियों को बहुजला और महार्णव कहा गया है, वे हैं- गंगा, यमुना, सरयू, कोशिका और मही।७३ इरावइ
वर्तमान में इसकी पहचान राप्ती से की जाती है। बृहत्कल्पभाष्य में उल्लेख है कि यह नदी बहुत छिछली थी और इसको आसानी से पार किया जा सकता था। इस नदी के कुछ भाग सूखे भी रहते थे अत: जैन साधु इसे पार कर भिक्षा लेने आया-जाया करते थे।७४