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आराधना कथाकोश को आचार्य आराधना कहते हैं । इन पाँचोंका खुलासा अर्थ यों है :-'
उद्योत-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक्तप इनका संसारमें प्रकाश करना, लोगोंके हृदयपर इनका प्रभाव डालना उद्योत है।
उद्यमन-स्वीकार किये हुए उक्त सम्यग्दर्शनादिका पालन करनेके लिये निरालस होकर बाह्य और अन्तरंग में यत्न करना उद्यमन है ।
निर्वाहण-कभी कोई ऐसा बलवान कारण उपस्थित हो जाय, जिससे सम्यग्दर्शनादिके छोड़नेकी नौबत आ जाय तो उस समय अनेक तरहके कष्ट उठाकर भी उन्हें न छोड़ना निर्वाहण है।
साधन-तत्त्वार्थादि महाशास्त्रके पठनके समय जो मुनियोंके उक्त दर्शनादिकी राग रहित पूर्णता होना वह साधन है ।
निस्तरण-इन दर्शनादिका मरणपर्यन्त निविघ्न पालन करना वह निस्तरण है।
इस प्रकार जैनाचार्योंने आराधनाका क्रम पाँच प्रकार बतलाया है। उसे हमने लिख दिया। अब हम उनकी क्रमसे कथा लिखते हैं।
१. पात्रकेसरीकी कथा पात्रकेसरी आचार्य ने सम्यग्दर्शनका उद्योत किया था। उनका चरित मैं लिखता हूँ, वह सम्यग्दर्शनकी प्राप्तिका कारण है।
भगवान्के पंचकल्याणोंसे पवित्र और सब जीवोंको सुखके देनेवाले इस भारतवर्ष में एक मगध नामका देश है। वह संसारके श्रेष्ठ वैभवका स्थान है। उसके अन्तर्गत एक अहिछत्र नामका सुन्दर शहर है। उसकी सुन्दरता संसारको चकित करनेवाली है।
नगरवासियोंके पुण्यसे उसका अवनिपाल नामका राजा बड़ा गुणी था, सब राजविद्याओंका पंडित था। अपने राज्यका पालन वह अच्छी नीतिके साथ करता था। उसके पास पाँचसौ अच्छे विद्वान् ब्राह्मण थे। वे वेद और वेदांगके जानकार थे। राजकार्यमें वे अवनिपालको अच्छी सहायता देते थे। उनमें एक अवगुण था, वह यह कि उन्हें अपने कुलका बड़ा घमण्ड था। उससे वे सबको नीची दृष्टिसे देखा करते थे। वे
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