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दर्शन ज्ञान
चरित्र, मुक्ति मार्ग कहाये ।
भाये ॥
तिनप्रति साधन रूप, साधु दिगम्बर विषयाशा को त्याग, निज आतम चित पागे । ऋद्धि सिद्धि सब पाय, जो नित साधु सुध्यावे ||५|| तत्व द्रव्य गुण सार, वीतराग मुख निकसी । गणधर ने गुणधार, जिनमाला इक गूंथी ।। 'स्याद्वाद' चिह्न सार, वस्तु अनेकान्त ऋद्धि सिद्धि सब पाय, जो जिनवाणी सम्यक् श्रद्धा सार, देव शास्त्र गुरु सम्यक् तत्व विचार, सम्यक् ज्ञान सम्यक् होय अचार, सम्यक्चारित
गाई ।
ध्याई || ६ |
भाई ।
कहाई ॥
गाई ।
ऋद्धि सिद्धि सब पाय, जो जिन मारग धाई ||७|| वीतराग जिनबिम्ब, मूरत हो सुखदाई ।
भाई ।।
दर्पण सम निजबिम्ब दिखता जिसमें कर्म कलंक नशाय, जो नित दर्शन पाते । ऋद्धि सिद्धि सब पाय, जो नित चैत्य को ध्या ॥८॥ वीतराग जिनबिम्ब, कृत्रिमाकृत्रिम जितने ।
शोभत हैं जिस देश हैं चैत्यालय
।।
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उन सबकी जो सार, भक्ति महिमा गावे । ऋद्धि सिद्धि सब पाय, जो चैत्यालय ध्यावे ।।९।।
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दोहा
नव देवता को नित भजे, कर्म कलंक नशाय । भव सागर से पार हो, शिव सुख में रमजाय ।।
नोट होता है ।
प्रतिदिन प्रातः पाठ करने से जीवन सुख, शान्ति और समृद्धि को प्राप्त
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