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आराधना कथाकोश
[ हिन्दी ] मंगल और प्रस्तावना
जो भव्य पुरुषरूपी कमलोंके प्रफुल्लित करनेके लिये सूर्य हैं और लोक तथा अलोकके प्रकाशक हैं - जिनके द्वारा संसारको वस्तुमात्रका ज्ञान होता है, उन जिन भगवान्को नमस्कार कर मैं आराधना कथाकोश नामक ग्रन्थ लिखता हूँ ।
उस सरस्वती - जिनवाणी के लिये नमस्कार है, जो संसारके पदार्थोंका ज्ञान करानेके लिये नेत्र है और जिसके नाम ही से प्राणी ज्ञानरूपी समुद्रके पार पहुँच सकता है, सर्वज्ञ हो सकता है ।
उन मुनिराजोंके चरणकमलोंको मैं ग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूपी मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, ब्रह्मचर्य आदि समुद्र हैं
नमस्कार करता हूँ, जो समयरत्नोंसे पवित्र हैं, उत्तम क्षमा, गुणोंसे युक्त हैं और ज्ञानके
इस प्रकार देव, गुरु और भारती का स्मरण मेरे इस ग्रन्थरूपी महलपर कलशकी शोभा बढ़ावे । अर्थात् आरम्भसे अन्तपर्यन्त यह ग्रन्थ निर्विघ्न पूर्ण हो जाय ।
श्रीमूल संघ- भारतीयगच्छ - बलात्कारगण और कुन्दकुन्दाचार्यकी आम्नाय में श्रीप्रभाचन्द्र नामके मुनि हुए हैं । वे बड़े तपस्वी थे । उनकी इन्द्र, धरणेन्द्र, चक्रवर्ती आदि सभी पूजा किया करते थे । उन्होंने संसारके उपकारार्थं सरल और सुबोध गद्य संस्कृतभाषा में एक आराधना कथाकोश बनाया है । उसीके आधारपर मैं यह ग्रन्थ हिन्दी भाषामें लिखता हूँ । क्योंकि सूर्य के द्वारा प्रकाशित मार्ग में सभी चलते हैं ।
कल्याणकी प्राप्ति के लिये आराधना शब्दका अर्थ जैन शास्त्रानुसार कहा जाता है । उनके सुननेसे सत्पुरुषों को भी सन्तोष होगा ।
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सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक्त्व ये संसारबन्धन - के नाश करनेवाले हैं, इनका स्वर्ग तथा मोक्षकी प्राप्ति के लिये भक्तिपूर्वक शक्तिके अनुसार उद्योत, उद्यमन, निर्वाहण, साधन और निस्तरण करने.
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