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नव देवता स्तवन
रचियत्री-आर्यिका स्याद्वादमती माताजी
दोहा परमेष्ठी पांचों न, जिनवाणी उरलाय । जिन मारग को धारकर, चैत्य चैत्यालय ध्याय ।। तर्ज-अहो जगतगुरु देव सुनियो ............. अरिहन्त प्रभु का नाम, है जग में सुखदाई । घाति चतु क्षयकार, केवल ज्योति पाई ।। वीतराग सरवज्ञ, हित उपदेशी कहाये । ऋद्धि-सिद्धि सब पाय, जो नित भक्ति सुध्यावे ।।१।। सिद्ध प्रभु गुणखान, सिद्धि के हो प्रदाता । कर्म आठ सब काट, करते मुक्ति वासा ।। शुद्ध-बुद्ध अविकार, शिव सुखकारी नाथा । ऋद्धि-सिद्धि सब पाय, जो नित नावे माथा ।।२।। आचारज गुणकार, पञ्चाचार को पाले । शिक्षा दीक्षा प्रदान, भविजन के दुःख टाले ।। अनुग्रह निग्रह काज, मुक्ति मारग चरते ।। ऋद्धि सिद्धि सब पाय, जो आचारज भजते ।।३।। ज्ञान ध्यान लवलीन, जिनवाणी रस पीते । अध्ययन, शिक्षा प्रधान, संघ में जो नित करते ।। रत्नत्रय गुणधाम, उपदेशामृत देते । ऋद्धि सिद्धि सब पाय, जो नित उवज्झाय भजते ।।४।।
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