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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १७९ दशनामनिरूपणम् नोगौणम्-यन्नाम गुणाननपेक्ष्यैव प्रवर्त्तते, तद् नोगौणम्-अयथार्थमित्यर्थः । तद्यथा-अकुंते सकुंते इति । कुन्ताख्यशस्वरहितोऽपि 'सकुंत' इत्युच्यते । इदमुदाहरणं प्राकृतशैल्या विज्ञेयम्। संस्कृते पक्षिवाचकस्य शकुन्तशब्दस्य तालव्यशकार वत्वात् ' अमुद्गः समुद्गः, अमुद्रः समुद्र इति। मुद्गाख्यधान्यरहितोऽपि पेटिकाजानना चाहिये। इस प्रकार तपन, ज्वलन, पवन रूप गुणों से निष्पन्न होने के कारण ये सब नाम गौण निष्पन नाम जानना चाहिये। (से तं गोण्णे) इस प्रकार यह गौण नाम का स्वरूप कथन है। (से किन तं नो गोण्णे ?) हे भदन्त ! नोगौण नाम क्या है ? ... उत्तर-(नोगोणे) नोगौण-जो नाम गुणों की अपेक्षा कि विना ही निष्पन्न होता है अर्थात् अयथार्थ होता है-वह इस प्रकार से :(अकुंनो सकुंतो अमुग्गो, समुग्गो, अमुद्दो, समुद्दो, अलोलं., पलालं, अकुलिया सकुलिया, नो पलं अस इत्ति पलासो, अमाइवाहए माइवाहए, अबीयवावए वीयवावर नो इंदगोवए इंदगोवए)"सकुन्त" यह नाम अयथार्थ नाम है। क्यों कि कुन्त नामक शस्त्र से जी युक्त होता है वही सकुन्त होना चाहिये। यह "सकुन्त" शब्द प्राकृत शैली से लिखा गया है। संस्कृत में "सकुन्त" की जगह "शकुन्त। ऐसा शब्द है । इसका अर्थ पक्षी होता है। पक्षी कुन्त भाले वाला नही होता है-फिर भी उसे जो " शकुन्त" कहा जाता है, सो यह उसका नाम " नोगौण" अगुण निष्पन्न नाम है।" अमुगः समुह જાણવું જોઈએ આ રીતે તપન, જવલન, પવન રૂપ ગુણેથી નિપૂન લેવા मम स नामाने गौरा नाम समापन (से तं गोण्णे) सा भंभागी नामर्नु १३५ ४थन छ (से किं तं नों गोण्णे !) लता ની ગૌણુનામ શું છે?
उत्तर-नो गोण्णे) जी-२ नाम शुशनी भक्षा १२ पन्न थाय छे , भयथाथ डाय छ- मा प्रभारी छ. (अकुंतो सर्कुले अमुग्गो, समुग्गी, अमुद्दो समुद्दो, अंलालं, पलालं, अकुलिया, सकुलिया, नो पलं अस इत्ति पलासो, अमाइवाहप माइवाहए, अबीयवावर बीयवावए नो इंद गोवए इंदगोवए) "सकुन्त" मा नाम अयथाथ छे भो अन्त नाम शखथी२ मा युत डाय छे त सन्त वन मा “ सकुन्त " Ad भात शैलीथी awanwi मान्यो छ. सतिभा "सकुन्त नात्यान. "शकुन्त " प्रयोग थाय छ, माना अर्थ पक्षी थाय छे पक्षी पुन्त युत એટલે કે ભાલાવા હેતું નથી છતાં એ તે “શકુન્ત” કહેવાય છે તે તેનું नाम "नोगौण" अशुप नियन्न नाम छ. "अमुद्गः" " समुद्गः" समुह