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अनुसन्धान-७५(१) ज्ञान अने रस-रुचिनं द्योतक बनी रहे छे. मल्लिनाथी सूत्र 'नाऽमूलं लिख्यते किंचित्'ने ध्येयमन्त्र तरीके स्वीकारीने सम्बन्धित अङ्कमा प्रकाशित सम्पादित कृति, लेख, ढूंक नोंध वगेरे विशे सुस्पष्ट छतां 'अनेकान्तवाद'ने केन्द्रमां राखीने विनम्रभावे पोतानुं मन्तव्य जणावता जोवा मळ्या छे. उदा. तरीके 'श्रावकविधिरास'ना अवलोकनमां नोंध्युं छे के अपभ्रंशभाषानी सुन्दर कृति छे. आना कर्ता पद्मानन्दसूरि नहीं पण गुणाकरसूरि जणाय छे. कृतिपाठ संशोधन मागे छे. वाचनभूलो, प्रमाण विशेष छे. क. १५ : 'जाहन'ने स्थाने 'जांह न', क. २० : 'वसाउ'ना स्थाने 'ववसाउ' वगेरे (५२.१०३). आ उपरांत पोताना द्वारा पूर्वेनी समीक्षामां कोई क्षति थई होय तो तेनो भूलस्वीकार करता पण जोवा मळे छे. प्रत्येक सम्पादित कृतिनां ग्रन्थकर्तृत्व, काव्यतत्त्व, छन्द, भाषा, व्याकरण, शब्दप्रयोगो, पाठनिर्धारण, ऐतिहासिक महत्त्व वगेरे बाबतोने संक्षेपमां आवरी लेवानी साथे महत्त्वपूर्ण कृतिने तारवी आपी तेना कर्ता अने कृतिनी समतोल विवेचना करवी ए तेमनी आगवी खासयित छे. तेमनां अवलोकनो संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, जूनी गुजराती अने कच्छी भाषाओ उपर तेमना भाषाप्रभुत्वनी साहेदी पूरे छे..
___तेमना अवलोकननी विशेषता ए छे के तेमनी नजरमां हमेशां कृति रहे छे नहीं के सर्जक । सम्पादक व्यक्ति. सम्पादक आचार्यश्री विजयशीलचन्द्रसूरि महाराज द्वारा सम्पादित 'सारस्वतोल्लास'- अवलोकन करतां नोंध्यु छे के 'शारदामन्त्रना जापनी पराकाष्ठाए कविने स्वप्नमां माता सरस्वतीनां दर्शन थाय छे. आ घटना माटे श्रीशीलचन्द्रसूरि तेमना प्रास्ताविकमां 'साक्षात्कार' शब्द वापरे छे. वस्तुतः आ साक्षात्कार नथी, पण मानसिक भास-आभास छे... विद्वान संशोधक आचार्यश्री कृतिने वधु स्पष्ट करवानो समय नथी मेळवी शक्या एम जणाई आवे छे. निरांते परिशीलन करतां वधु शुद्ध थई शके एम छे. केटलीक अशुद्धिओ अहीं नोंधुं छु....'(१६.२४०-२४१). आ साथे आवश्यकतानुसार कृतिना सम्पादकने मार्मिक टकोर पण करता जोवा मळे छे. जेम के 'मुनिवरसुरवेली'ना सन्दर्भे नोंध्युं छे के 'लेखक एटले के लहियाना हाथे थयेली भूलोने सम्पादकोए जेमनी तेम राखवानी जरूर न होय. संशोधके मूळ रचनाकारनी निकट आववानुं छे. पादनोंधमां के प्रस्तावनामां