Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 204
________________ १९२ लिखा है - 'कल्पविशेषचूर्णि, बृहत्कल्पसूत्रविशेषचूर्णि' । आरंभ : नमो जिनाय । काऊण नमोक्कारं... ॥ अनुसन्धान - ७५ (१) अन्त : जक्खो च्चिय होति पलि... (?) । अक्खरमत्ताहीणं जं च मया अग्गलं इहं लिहियं । खमियव्वं तं सव्वं बुहेहिं मम मंदमय (इ) णो वि । इति श्रीबृहत्कल्पभाष्यम् ॥ पत्र २०७ । ४. ब. संज्ञक प्रति । यह प्रति पूणे - स्थित भाण्डारकर इन्स्टिट्यूट क्र. १५०/१८८१/८२ की है । हमारे पास उसकी जेरोक्स नकल है, जो भाण्डारकर इन्स्टिट्यूट से प्राप्त की है । पत्र १२८ । नाम है कल्पबृहद्भाष्य । 1 आरंभ : नमोजिनाय । काऊण नमोक्कारं...। अन्त : जक्खो च्चिय होति पलि (?) ॥ साहश्रीवच्छा - सुत सहसकिरणेण पुस्तकमिदं गृहीतं, सुत - वर्धमान - शान्तिदास - परिपालनार्थम् । ग्रन्थाग्र ८६०० । माहजनइ || पत्र १२८ । ये दोनों प्रतियाँ भी ताडपत्र जैसी ही अशुद्ध हैं । फिर भी अमुक स्थान पर अच्छे पाठ देने के कारण वह बहुत उपयुक्त रही हैं । बृहद्भाष्य में जहाँ भी लघुभाष्य की गाथा आती है, वहाँ उन गाथाओं को मुद्रित वृत्तिगत वाचना के साथ मिलाई हैं, और जहाँ कोई पाठभेद या पाठान्तर मिला उसे मु. संज्ञा से टिप्पणी में लिख दिया है। कभी कभी ऐसा भी हुआ है कि कागजप्रति की वाचना मुद्रित वाचना के समान हो, और ताडपत्र - प्रति अलग पाठ देती हो । कुछ कठिन शब्दार्थ भी टिप्पणी में दिये हैं । बृहद्भाष्य की जो जो गाथाएँ कल्पवृत्ति में उद्धृत की गई हैं उन सब की नोंध बृहद्भाष्य में उस उस स्थान पर टिप्पणीरूप से की गई है। पाठभेदों की एवं अन्य सूचनात्मक टिप्पणी देवनागरी अङ्को में की गई हैं । और टिप्पणी में जो इंग्लिश अङ्कोंवाली टिप्पणी हैं, वहाँ जो गाथाङ्क हैं वे चूर्णिग- सम्मत लघुभाष्य की वाचना के अङ्क हैं। वहाँ दो बात की गई हैं : दोनों की गाथाओं में शाब्दिक समानता हो तो केवल गाथाङ्क दिये हैं, और शब्दों से गाथा भिन्न होने पर भी अर्थ से समानता है वहाँ 'तुलना' शब्द लिखकर गाथाङ्क दिये हैं ।

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