Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 210
________________ अनुसन्धान- ७५ (१ ) व्यवहारभाष्यकार पूर्ववर्ती छे एमां लेश पण शंकाने स्थान नथी । " वही, पृ. ८६ । T 44 'बृहत्कल्पसूत्र : प्रास्ताविक' आ प्रस्तावना सं. २००८, ई. १९४२ मां मुद्रित छे। ज्यारे 'जैन आगमधर और प्राकृत वाड्मय' - ए लेख सने १९६४ नो छे केवल पदवीभेद से व्यक्तिभेद की कल्पना नहीं की जा सकती । एक ही व्यक्ति विविध समय में विविध पदवियाँ धारण कर सकता है । कभी कभी तो कुछ पदवियाँ परस्पर पर्यायवाची भी बन जाती हैं। ऐसी दशा में केवल 'वाचक' और 'क्षमाश्रमण' पदवियों के आधार पर यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि इन पदवियों के धारण करनेवाले संघदासगणि भिन्न भिन्न व्यक्ति थे ।" जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ३, पृ. १३५ - १३६, मोहनलाल मेहता, पार्श्वनाथ विद्याश्रम, बनारस, ई. १९६७ । ११. “एक मूर्ति के पद्मासन के पिछले भाग में 'ॐ देवधर्मोऽयं निर्वृतिकुले जिनभद्रवाचनाचार्यस्य' ऐसा लेख है ।" वही, पृ. १३१ । १२. वाचकमुख्यस्य शिवश्रियः प्रकाशयशसः प्रशिष्येण । शिष्येणघोषनन्दि-क्षमणस्यैकादशाङ्गविदः || १९८ ९. १०. वाचनया च महावाचकक्षमणमुण्डपादशिष्यस्य । शिष्येण वाचका ( ना? )चार्य - मूलनाम्नः प्रथितंकीर्तेः ॥ अन्तिमोपदेशकारिका - प्रशस्तिः । - १८. वही, पृ. ३९ । १९. देखें टि. क्र. ६ । ... ३, पृ. १३६ - १३७ । १३. देखें जैन साहित्य का बृहद् इतिहास १४. “कल्प और व्यवहारभाष्य के कर्ता एक ही हैं ।" - निशीथसूत्रम् पीठिकाखण्ड १ में प्रस्तावना, पृ. ३८ (टि.), सं. उपा. अमरमुनि मुनि कन्हैयालाल, प्र. अमर पब्लिकेशन, वाराणसी, ई. २००५ - तत्त्वार्थसूत्र १५. वही, पृ. २९-३० । १६. वही, पृ. ३८-३९ । १७. “हाँ, तो उक्त गाथा में आचार्य ने अपने नाम की कोई सूचना नहीं दी है, ऐसा माना जा सकता है । " वही, पृ. ४० । २०. " उपर्युक्त सभी उल्लेखों के आधार पर यह निश्चय किया जा सकता है कि निशीथभाष्य तो निर्विवाद रूप से सिद्धसेन क्षमाश्रमण कृत है । और क्योंकि

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