Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 209
________________ सप्टेम्बर १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. - २०१८ १९७ प्रस्तावना की टिप्पणियाँ "संघदासगणि नामना बे आचार्यो थया छे : एक वसुदेवहिंडि - प्रथम खण्डना प्रणेता, अने बीजा प्रस्तुत कल्पलघुभाष्य अने पंचकल्पभाष्यना प्रणेता ।" 'बृहत्कल्पसूत्र : प्रास्ताविक', 'ज्ञानांजलि', (गुजराती) पृ. ८४, सागरगच्छ उपाश्रय, वडोदरा, ई. १९६९ । 44 . वसुदेवहिंडि - प्रथम खण्डना प्रणेता श्रीसंघदासगणि 'वाचक' पदालंकृत .. हता, ज्यारे कल्पभाष्यप्रणेता संघदासगणि 'क्षमाश्रमण' पदविभूषित छे ।" वही, पृ. ८५ । ".. वसुदेवहिंडि - प्रथम खण्डना प्रणेता श्रीसंघदासगणि वाचक तो निर्विवाद रीते तेमना (जिनभद्रगणिना) पूर्वभावी आचार्य छे।" - वही, पृ. ८५ । " परन्तु भाष्यकार श्रीसंघदासगणि क्षमाश्रमण तेमना (जिनभद्रगणिना) पूर्वभावी छे के नहि ए कोयडो अणउकल्यो ज रही जाय छे।" - वही, पृ. ८५ । “संघदासगणि क्षमाश्रमण (वि. ५ वीं शताब्दी) : ये आचार्य वसुदेवहिंडि प्रथम खण्ड के प्रणेता संघदासगणि वाचक से भिन्न हैं एवं इनके बाद के भी हैं। इन्होंने कल्पलघुभाष्य और पञ्चकल्पभाष्य की रचना की है । वे महाभाष्यकार जिनभद्रगणि के पूर्ववर्ती हैं।" - वही, 'जैन आगमधर और प्राकृत वाङ्मय', (हिन्दी) पृ. ३७ | 1 "एम लागे छे के कल्प, व्यवहार अने निशीथ लघुभाष्यना प्रणेता श्रीसंघदासगणि क्षमाश्रमण होय तेवो ज संभव वधारे छे । कल्पलघुभाष्य अने निशीथलघुभाष्य ए बेमांनी भाष्यगाथाओनुं अतिसाम्यपणुं आपणने आ बन्ने भाष्यकारो एक होवानी मान्यता तरफ ज दोरी जाय छे।" - वही, (गुज.) पृ. ८६ । 44 बृहत्कल्पलघुभाष्यना प्रथम उद्देशनी समाप्तिमां भाष्यकारे ‘उदिण्णजोहाउलसिद्धसेणो, स पत्थिवो णिज्जियसत्तुसेणो' (गा. ३२८९) आ गाथामा, के जे आखं प्रकरण अने आ गाथा निशीथलघुभाष्यना सोळमा उद्देशामां छे तेमां, लखेला 'सिद्धसेणो' नाम साथे भगवान श्रीसंघदासगणि क्षमाश्रमणने कोई नामान्तर तरीकेनो संबंध तो नथी ? । ... 'सिद्धसेन' शब्द एवो छे के सहजभावे आपणुं ध्यान खेंचे छे ।" • वही, पृ. ८६-८७ । “व्यवहारभाष्यना प्रणेता कया आचार्य छे, ते क्यांय मळतुं नथी; तेम छतां ए आचार्य एटले के व्यवहारभाष्यकार, श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमणथी पूर्वभावी होवानी मारी दृढ मान्यता छे । आ उपरथी श्रीजिनभद्रगणि करतां

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