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सप्टेम्बर - २०१८
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कल्प-बृहद्भाष्य की हमारे पास ४ प्रतियाँ थी। उनमें दो प्रति जैसलमेर की ताडपत्र-प्रतियाँ, और दो कागज की प्रतियाँ थी । उनका परिचय इस प्रकार
१. ता.१ संज्ञक प्रति । प्रतिपरिचय : जेसलमेर, जिनभद्रसूरि ज्ञानभण्डार, प्रति क्र. ४९, कल्प-बृहद्भाष्य, प्रथम खण्ड । पत्र २०२ ।
आरंभ : नमो वीतरागाय । काऊण नमोक्कारं... ।
अन्त : ०जक्खो च्चिय होति तरोपलि (?) ॥ संवत् १४९० वर्षे मार्गशीर्षशुदिपञ्चम्यां तिथौ गुरुवासरे श्रीमति स्तंभतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे श्रीमत्-खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबन्धुरबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलय चारुचारित्रचन्दनतरुमलय युगप्रवरोपम मिथ्यात्वतिमिरकरदिनकरप्रसरसम श्रीमद्गच्छेश भट्टारक श्रीजिनभद्रसूरीश्वराणां सूपदेशात् परीक्ष गूजरसुतेन रेखाप्राप्तसुश्रावकेन सा. धरणाकेन पुत्रसाइयासुतसहित श्रीसिद्धान्तकोशे बृहत्कल्पभाष्यपुस्तकं लिखापितं । पत्र २०२ ।
२. ता.२ संज्ञक प्रति । प्रतिपरिचय : जेसलमेर, जिनभद्रसूरि ज्ञानभण्डार, प्रति क्र. ४८, पत्र ३११, कल्प-बृहद्भाष्य - प्रथम खण्ड । पत्र १ तथा अन्तिम पत्र नहि हैं । बीच के अमुक पत्र भी नहीं हैं । अन्तिम पत्र का एक खण्ड फोटोकोपी में देखा जाता है। इसमें दृश्यमान अक्षर -
अन्त : राज.प.जिणदासादिपरिवारयुतेन श्रीकल्पबृहद्भा० ।।
अन्य एक खण्ड में 'अक्खरमत्ताहीणं जं...' 'लीलानिलयबन्धुरबहुबुद्धिबोधित...' ऐसा पढा जाता है।
स्पष्ट है कि दोनों प्रतियाँ सं. १४९० की हैं, धरणाक ने लिखाये चित्कोश की हैं। दोनों एकमेक की नकल जैसी हैं और अत्यन्त अशुद्ध एवं भ्रष्ट पाठ से भरी हैं। फिर भी हमारे लिए तो ये प्रतियाँ ही मुख्य आधार रही है।
३. अ. संज्ञक प्रति । यह कागज की प्रति है। पाटण के मोदी भण्डार की और अब श्रीहेमचन्द्राचार्य ज्ञानभण्डार की प्रति है। पाताहेम १००४० क्र. की है। पत्र २०७ । हमारे पास श्रीजम्बूविजयजी के द्वारा की हुई जेरोक्स नकल है। यह प्रति तो बृहद्भाष्य की है, लेकिन उसके उपर जम्बूविजयजी ने नाम ऐसा