________________
सप्टेम्बर - २०१८
१९३
परिशिष्टों का परिचय इस सम्पादन के अध्ययन में अध्येताओं की सुगमता के लिए हमने कितनेक परिशिष्ट परिश्रमपूर्वक तैयार किये हैं उनका ब्यौरा इस प्रकार है :
परिशिष्ट १ : बृहत्कल्पसूत्र का स्वाध्याय । इसमें चूर्णि, वृत्ति एवं बृहद्भाष्य - इन तीनों में या तो तीन में से किसी एक या दो में, जहाँ जहाँ प्रतिपादन में, पाठ में, अर्थघटन में, गाथाक्रम आदि में भिन्नता, समानता या न्यूनाधिकता मालूम हुई, वहाँ विमर्शपूर्वक विस्तृत नोंध या टिप्पणी हमने लिखी है। अन्य ग्रन्थों के आवश्यक या विषयानुरूप सन्दर्भो का भी वहाँ यथाशक्य उपयोग किया है। अभ्यासी संशोधकों के लिए अत्यन्त उपयोगी बन सके वैसा यह परिशिष्ट है।
परिशिष्ट २ : प्रायश्चित्तविधान । इसमें चूर्णि, वृत्ति एवं बृहद्भाष्य में प्ररूपित प्रायश्चित्तों के अनेक कोष्ठक बनाकर रखे हैं। तीनों में वर्णित प्रायश्चित्तों की तुलना नोंधरूप से की है। इससे तीनों के प्रायश्चित्त-निरूपण में कहाँ - क्या - कितना तफावत है यह ज्ञात हो सकेगा।
परिशिष्ट ३ : शास्त्रान्तरसन्दर्भ । यहाँ १. निशीथलघुभाष्य, २. व्यवहारलघुभाष्य, ३. जीतकल्प-भाष्य, ४. ओघनियुक्ति एवं उसका भाष्य, ५. यतिजीतकल्प - इन सब ग्रन्थों के साथ समानता रखती, कल्पलघुभाष्य की चूर्णि-मान्य गाथाओं की तालिका, तीन प्रकार से दी है - १) उक्त सब ग्रन्थों की, कल्पभाष्य की गाथा के साथ समान हो ऐसी
गाथाओं की, गाथा के क्रमाङ्क एवं पाठभेदों के साथ क्रमशः अलग
अलग तालिका। २) गाथाओं की संयुक्त तालिका, यानी कि लघुभाष्य की गाथा के अङ्क
के साथ उक्त पांचों ग्रन्थगत उस उस गाथा के क्रमांक एकसाथ में। ३) पाठभिन्नता के कारण जहाँ विशेष अर्थभेद प्रतीत हुआ, वहाँ उस ___ उस चूर्णि-वृत्ति के पाठ की नोंध । परिशिष्ट ४ : पाठभेदसूचि । चूर्णि, वृत्ति, बृहद्भाष्य - इन तीनों में