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अनुसन्धान-७५(१)
व्यक्ति के ही हो' ऐसी जो कल्पना पुण्यविजयजी ने की है, उसका प्रतिविधान मालवणियाजी ने कर ही दिया है, अतः कुछ कहने की जरूर नहीं। और पं. मालवणिया की कल्पनाओं का उत्तर यहाँ उपर दिया गया है, अतः कल्प व व्यवहार के भाष्यों के कर्ता सिद्धसेन नहि, अपितु संघदासगणि ही हैं और वे महाभाष्यकार के पूर्ववर्ती हैं यह उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध हो जाता है।
अब सवाल यह आता है कि संघदासगणि नामक आचार्य कितने हुए - एक या दो? और दोनों का समय और पौर्वापर्य क्या हो सकता है? ।
मुनि श्रीपुण्यविजयजी ने लिखा है कि "प्रस्तुत कल्पभाष्यना प्रणेता श्रीसंघदासगणि क्षमाश्रमण छे. संघदासगणि नामना बे आचार्यो थया छे. एक वसुदेवहिडि - प्रथम खण्डना प्रणेता अने बीजा प्रस्तुत कल्पलघुभाष्य अने पंचकल्पभाष्यना प्रणेता. आ बन्नेय आचार्यो एक नथी पण जुदा जुदा छे, कारण के वसुदेवहिडि - मध्यम खण्डना कर्ता आचार्य श्रीधर्मसेनगणि महत्तरना कथनानुसार, वसुदेवहिंडि - प्रथम खण्डना प्रणेता श्रीसंघदासगणि 'वाचक' पदालंकृत हता, ज्यारे कल्पभाष्यना प्रणेता संघदासगणि 'क्षमाश्रमण' पदविभूषित छे. उपरोक्त बन्नेय संघदासगणिने लगती खास विशेष हकीकत स्वतंत्र रीते क्यांय जोवामां आवती नथी. एटले तेमना अंगेनो परिचय आपवानी वातने आपणे गौण करीए तो पण बन्नेय जुदा छे के नहि तेम ज भाष्यकार अथवा महाभाष्यकार तरीके ओळखाता भगवान् जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण करतां पूर्ववर्ती छे के तेमनी पछी थयेला छे ए प्रश्नो तो सहज रीते उत्पन्न थाय छे. भगवान् श्रीजिनभद्रगणिए तेमना विशेषणवती ग्रन्थमां वसुदेवहिंडि ग्रन्थना नामनो उल्लेख अनेकवार को छे. एटलुं ज नहि, किन्तु वसुदेवहिंडि - प्रथम खण्डमां आवता ऋषभदेवचरित्रनी संग्रहणी-गाथाओ बनावीने पण तेमा दाखल करी छे. एटले वसुदेवहिडि - प्रथम खण्डना प्रणेता श्रीसंघदासगणि वाचक तो निर्विवाद रीते तेमना पूर्वभावी आचार्य छे. परंतु कल्पभाष्यकार श्रीसंघदासगणि क्षमाश्रमण तेमना पूर्वभावी छे के नहि ए कोयडो तो अणउकल्यो ज रही जाय छे.''५३
इस लेख में मुनिजी का तात्पर्य ऐसा है कि १) संघदासगणि दो हुए । २) वसुदेवहिडिवाले संघदासगणि जिनभद्रगणि के पूर्वभावी हैं । ३) भाष्य के प्रणेता संघदासगणि कब हुए यह अनिश्चित है।