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अनुसन्धान-७५ (१)
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प्रति है । मूलतः संघ के भण्डार की यह प्रति है । इसका क्र. वहाँ 'पाताहेसं९' है । पृष्ठ १ ३९३ हैं । मुनि श्रीजम्बूविजयजी के द्वारा की गई जेरोक्स- नकल हमें प्राप्त हुई है। इस प्रति के दो विभाग हैं। प्रथम विभाग में ३८३ पत्र तक चूर्णि है, और शेष १० पत्रों में मूल सूत्र - ग्रन्थ है ।
प्रारंभ : नमः सिद्धं ॥ मंगलादीणि सत्थाणि...।।
अन्त (पीठिका का) : इति कल्पचूर्ण्य पेठिका समत्ता | पत्र ९१ / २ |
अन्त (ग्रन्थ का) : (हमारे सामने ग्रन्थ का अन्तिम पत्र इस वक्त मौजूद नहि । अत: पूर्व की ग्रन्थावृत्ति में से ) लेखन संवत् १२९१ वर्षे पोस सुदि ४ सोमे ।। पृ. ३९३ ।
२. भां. संज्ञक प्रति । पूणे - स्थित भाण्डारकर इन्स्टिट्यूट की यह प्रति है । उसे 'भांता ३९' ऐसी संज्ञा दी गई है। पृष्ठ संख्या १ ४६६ है । इसकी भी श्रीम्बूविजयजी के द्वारा की गई जेरोक्स - प्रति हमें प्राप्त हुई है ।
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प्रारंभ : नमः प्रवचनाय । मंगलादीणि सत्थाणि... ।। जे. पत्र १३५ । अन्त (पीठिका का) : इति कल्पचूर्ण्य पीठिका परिसमाप्ता ॥ पृ.
१९० ।
यह प्रति अशुद्ध है
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अन्त (ग्रन्थ का) : कल्पचूर्णी समाप्ता । संवत् १३३४ वर्षे मार्गशुदि १३ गुरौ । कल्पचूर्णी समाप्ता । शुभं भवतु सर्वजगतः ॥ पृ. ४६६ /
इस प्रति में पहले मूलसूत्र, फिर लघुभाष्य और उसके बाद में चूर्णिग्रन्थ
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३. पू.२ संज्ञक प्रति । यह भी पूणे - स्थित भाण्डारकर इन्स्टिट्यूट के संग्रह की प्रति है । पत्र २८१ हैं । उसे 'भांता ४२' ऐसी पहेचान दी गई है। इसकी भी श्रीजम्बूविजयजी के द्वारा की गई जेरोक्स - प्रति हमें प्राप्त हुई है ।
प्रारंभ : ॐ नमो वीतरागाय । मंगलादीणि सत्थाणि... 11
अन्त (पीठिका का) : कल्पचूर्ण्य पीठिका परिसमाप्ता ॥ जेरोक्स पत्र
५३ ।