Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 194
________________ १८२ अनुसन्धान-७५ (१) लघुभाष्य की उपलब्ध मुद्रित वाचना के साथ बृहद्भाष्य में स्वीकृत वाचना का मिलान करते वक्त अनेक पाठभेद प्राप्त हुए । उनका संग्रह हमने परिशिष्ट क्र. ४ में किया है । हमारे यहाँ लघुभाष्य और बृहद्भाष्य - ऐसे दो भाष्यों की परम्परा रही | जैसे कि कल्प और व्यवहार का लघुभाष्य उपलब्ध है ही, और अब उन दोनों का यह बृहद्भाष्य भी, भले अपूर्ण ही हो, मिल रहा है । वैसे ही अन्य ग्रन्थों पर भी ऐसे दो भाष्य बने हैं, चाहे उनमें से कोई आज उपलब्ध न भी हो । विशेषावश्यकभाष्य ‘महाभाष्य' के नाम से प्रख्यात है । वैसे 'बृहद्' व 'महा' दोनों शब्द समानार्थक ही हैं, फिर भी उसे 'बृहद्भाष्य' नहि कहा जाता । दोनों बडे भाष्यों की विवरण-पद्धति में काफी भिन्नता भी है । महाभाष्यकार ने आवश्यकनिर्युक्ति की एवं मूल भाष्य की गाथा को लेकर उस पर विवरण किया है ऐसा नहीं । उन्होंने, उन गाथाओं को आधार बनाकर, अपने चित्त में जिन विषयों एवं पदार्थों का प्रतिपादन व विवेचन करने का ठाना है, वह पूरी स्वतन्त्रता से और बडे विस्तार के साथ किया है । कल्प के बृहद्भाष्य में यह पद्धति नहि दिखाई देती । यहाँ तो स्पष्टतया लघुभाष्य की गाथाओं पर, चूर्णि एवं वृत्ति के ज्यूं ही, बृहद्भाष्य विवरण ही करता है । दोनों बडे भाष्यों का यह तफावत है । तो भी इस बृहद्भाष्य में विशेषताएँ कम नहि हैं । चूर्णि एवं वृत्ति की तुलना में यह अनेक रीति से विशिष्ट विवरण है, इतना तो इसके थोडे अध्ययन के बाद भी मानना पडेगा । उन विशेषताओं पर एक दृष्टिपात करें १) अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों पर चूर्णि एवं वृत्ति में जहाँ स्पष्टता नहि मिलती, वहाँ बृहद्भाष्य स्पष्टता देता है । उदाहरणार्थ - ― १. 'हेट्ठिल्ला' (गा. ६००) गाथा पर बृहद्भाष्य में ४३ गाथा प्रमाण (१२७८ - १३२१) विस्तृत विवेचन हुआ है, और उसमें जो स्पष्टता होती है वह वृत्ति या चूर्णि से नहि होती । २. इसी प्रकार, ‘पिण्ड' के दोषों के अधिकार में, चूर्णि व वृत्ति, भेदों का बहुत संक्षिप्त वर्णन कर प्रायश्चित्त बताकर रुक गये हैं । जब कि बृहद्भाष्य में सभी दोष-भेदों का विस्तृत वर्णन किया गया है - गा.

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