Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 192
________________ १८० अनुसन्धान-७५(१) चूर्णिकार टाल देते हैं और 'कंठा/कंठं' कहकर बात निपटा देते हैं। तो भी इतना निश्चित है कि चूर्णिकार यदि भाष्य के पदार्थों को खोलकर न दिखाते तो कई बातें या रहस्य हमारे लिए अछूते ही - अज्ञात ही रह जाते । जैसे कि - भाष्यगाथा में विविध कथाओं के संकेत एक-दो पदों से लिख दिये हैं। मगर इतने से वह किसकी व कौनसी कथा है इसका पता हम नहि लगा सकते थे। लेकिन चूर्णिकार ने उन संकेतित कथाओं को विस्तार में लिख दी हैं । उदा. 'वच्छग गोणी खुज्जा०' (१७२)९३- इस गाथा में सूचित कथाओं को चूणि में स्पष्ट एवं विस्तृत रूप से समझा दी गई हैं। उपमा और दृष्टान्त भी इसी प्रकार समझाये हैं। जैसे कि उक्त गाथा में ही 'वच्छग-गोणी' का दृष्टान्त । अथवा गा. १९२९४ में 'पेडा' का दृष्टान्त, जिसे चूर्णि में खोलकर समझाया गया है। गा. १९० में भी अनेक दृष्टान्तों के संकेत ५ दिये हैं, जिन्हें बिना चूर्णि की मदद के समझ पाना कठिन था। कौनसी गाथा किस पद की व्याख्यारूप है यह भी चूर्णि के जरिये ही समझ में आता है। जैसे कि 'अणु बायरे य उंडिय०'९६ (१९०) में अनेक पद हैं, उन पदों की भाष्य में व्याख्या तो है, मगर कौनसी गाथा किस पद को व्याख्यायित करती है, वह तो चूर्णि से ही मालूम पडता है । यहाँ 'उंडिय' की व्याख्या 'अधितो जोग णियोगो०'९७ (१९६-९७) में है, उसका बोध चूणि के अवतरण से ही होता है। वैसे ही अन्य पदों के विषय में भी, और अन्यत्र भी समझना है। चूर्णि गाथाओं का सम्बन्ध भी जोड देती है। जैसे कि गा. १०९ की चूणि में लिखा कि "एत्थ वक्कं पडितं - कोद्दवा चेव"९८, चूणिकार ने यह संकेत गा. ९७ में आते पद 'कोद्दवा चेव' की ओर किया है और सूचित किया कि अब उन पदों की व्याख्या हो रही है। चूणि न होती तो यह सम्बन्ध जोडना जरा विकट होता। प्रायश्चित्त के विषय में भी चूर्णि में पर्याप्त स्पष्टता की गई है। अन्यथा कहाँ - किस विषय में कितना व क्या प्रायश्चित्त इसका स्पष्टीकरण नहि हो पाता । जैसे कि 'छक्काय चउसु लहुगा०'९९ (गा.४६२) में जो प्रायश्चित्त के संकेत हैं, वे चूर्णि से ही स्पष्ट हो सकते हैं। बिना चूर्णि के उन संकेतों को समझ पाना मुश्किल

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