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सप्टेम्बर - २०१८
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अनुरूप जो भी जितना भी था उसका संग्रह किया, व्याख्या की, और खुद की बृहत्ता सार्थक ठहराई।
प्रतिलेखना-काल के आदेशान्तरों के बारे में एवं 'हेट्ठिल्ला' गाथा के विविध अर्थघटन व मतान्तरों के बारे में भी यही बात लागू हो सकती है। चूर्णिकार को संक्षेप अपेक्षित था इसलिए उन्होंने ज्यादा मतान्तर आदि का ग्रहण एवं व्याख्यान नहि किया । बृहद्भाष्यकार का लक्ष्य विस्तृत विवरण था, तो उन्होंने सभी आदेशान्तर एवं मतान्तरों का संग्रह एवं विवरण कर दिया।
लेकिन इस कारण से चूणि पूर्व की और बृहद्भाष्य पीछे का - ऐसा निष्कर्ष निकालना औचित्य नहि रखता।
हमारी स्पष्ट और दृढ धारणा है कि बृहद्भाष्य की रचना चूर्णि से पहले हुई है। यद्यपि उपलब्ध पूरे बृहद्भाष्य का अवलोकन करना अभी बाकी है। परन्तु जैसे जैसे अवगाहन होता जाएगा, वैसे कोई प्रमाण मिल जा सकता है, और तब यह धारणा यथार्थ सिद्ध भी हो सकती है।
बृहद्भाष्य एक भाष्य है, उसका स्थान एवं निर्माण ‘भाष्ययुगीन' ही होना चाहिए । 'चूर्णियुग' में उसका निर्माण हुआ मानना, हमारी दृष्टि में उचित नहि लगता।
आगे संघमाणिक्यगणि के 'आगमवाचनानुक्रम' की बात हुई है। उसमें बृहद्भाष्य के लिए ऐसी नोंध है -
• काऊण नमुक्कारं० (पूरी गाथा)। • कृगि करणत्थो धातू० (पूरी गाथा, बृहद्भाष्य की) । इति श्रीकल्पव्यवहारबृहद्भाष्यं । ग्रन्थागं १२००० ॥
इस नोंध के फलितार्थ - १. कल्प-व्यवहार का बृहद्भाष्य एक व अखण्ड होना चाहिए । २. उसका कर्ता एक ही होगा। ३. आज बृहद्भाष्य अपूर्ण उपलब्ध है, और जितना अंश प्राप्य है वह प्रायः
७००० गाथा प्रमाण है, और प्राप्त अंश बृहत्कल्प के भाष्य का ही है, तो