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अनुसन्धान-७५(१)
ओक समयनी गुजरातनी समृद्ध शक्तिशाळी मैत्रक राजधानी वलभी विद्यातीर्थ पण हती ते जैन धर्मनी महान प्रवृत्तिओनुं प्राचीन महाकेन्द्र हतुं. अहीं ज नागार्जुन सूरिना नेतृत्वमां आगमनी वाचना करायेल जे 'वलभीवाचना' तरीके प्रसिद्ध छे. (ई.स. ३००-३१३). आ पछी ई.स. ५४३-४६मां वलभीमां ज आचार्य देवर्धिगणि क्षमाश्रमणना नेतृत्वमा अन्तिम वाचना तैयार थई. हाल समस्त भारतमां श्वेताम्बर जैनो आ समीक्षित वाचनाने अनुसरे छे. आम क्षत्रप-मैत्रक समय दरम्यान वलभीमां जैनधर्मर्नु बाहुल्य होवानुं सिद्ध थाय छे. अहीं चन्द्रप्रभुनु चैत्य अने भगवान महावीरनुं प्रसिद्ध मन्दिर हतुं.
आ पछी विदेशी आक्रमणखोरो द्वारा वलभीभङ्ग (आठमा सैकानो लगभग अन्त भाग) थतां : ओक मत मुजब जैनोने तेनी पूर्व माहिती-अणसार आवी जतां जैनो वलभीमांथी अन्यत्र स्थळान्तर करी गयानुं मनाय छे. साथोसाथ तेओओ त्यांनी महत्त्वनी जैन प्रतिमाओने अन्यत्र खसेडी लीधेल; तेमांनी प्रमुख चन्द्रप्रभनी मूर्ति, अम्बा ने क्षेत्रपालनी प्रतिमाओ देवपत्तन-शिवपत्तनमां, अर्थात् प्रभासमां प्रतिष्ठित करायेल;५ 'प्रबन्ध-चिन्तामणि'अने 'विविधतीर्थकल्प' जेवां जैन ग्रन्थोमां चन्द्रप्रभनी प्रतिमा आकाशमार्गे शिवपत्तन-देवपत्तन गया मळे छे. आने गाळी नाखीओ तो, ओ प्रतिमाओ सलामत-सुरक्षित स्थळ प्रभासमां प्रतिष्ठित करवा स्थलान्तर करायेल तारण नीकळे. वलभीथी छेक प्रभासमा प्रतिमाओ प्रतिष्ठित कराई ते ओ समये प्रभास अ युगनुं प्रसिद्ध जैन केन्द्र हशे तेम मानी शकाय.
गुजराती भाषाना साहित्यनो प्रारम्भ जैनोना हाथे अर्थात् जैन मनि कवि विद्वानोना हाथे थयेलो मनाय छे. रचना वर्ष धरावती सौथी पहेली जैन कृति शालिभद्रसूरिनो 'भरतेश्वरबाहुबलिरास' (वि.सं. १२४१-ई.स. ११८५) छे; ज्यारे रचना वर्ष धरावती सौथी पहेली जैनेतर कृति असाईतनी 'हंसाउली' (वि.सं. १४२९-ई.स. १३७१) छे. रचना वर्ष वगरनी अज्ञात कवि कृत 'वसन्तविलास' जेवी जैनेतर जणाती कृति थोडी वहेली रचायेली होय अम मानी तो पण उगती गुजराती भाषामां रचना करवानुं पहेलुं साहस जैन कविओओ कर्यु छे अ हकीकत छे."
___आगळ कर्वा ओ अर्थात् 'गुजराती' पहेलां अपभ्रंश युगना कविओमां पण जैनोनुं विशेष प्रदान छे. आ अपभ्रंशयुगना धनपाल नामना कविनी 'पाइयलच्छीमाला' (रचाया सं. १०२९, ई.स. ९७४) प्रसिद्ध रचना छे. मूळे ओ