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सप्टेम्बर - २०१८
१४१ का उल्लेख है,२३ अतः ३७वें बोल से ३८वें बोल को बहुत बड़ा संख्यातगुणा मानने की क्लिष्ट कल्पना कथमपि औचित्यपूर्ण नहीं कही जा सकती । तदनुसार ३७वें बोल से ३८वें बोल को सामान्य संख्येयगुण अधिक मानना चाहिए ।
३८वें बोल से ४०वाँ बोल छोटा संख्येयगुणा अधिक है, यह ऊपर कहा जा चुका है। वैसी स्थिति में यह स्वतः सिद्ध है कि ३७वें बोल से ४०वां बोल संख्येयगुण अधिक है अर्थात् तिर्यञ्च स्त्री से देव संख्येयगुण ही है। → बिन्दु क्रमांक-५
'जीवसमास' गाथा २७२ एवं उसकी मलधारी हेमचन्द्रसूरिजी कृत वृत्ति में भी तिर्यञ्च स्त्री से देवों को संख्येयगुणा ही बताया है ।२४
जीवसमास गाथा १५२ एवं उसकी मलधारी हेमचन्द्रसूरिजी कृत वृत्ति से भी यही अर्थ निकलता है कि तिर्यञ्च स्त्री से देव संख्येयगुणा है ।२५ २ बिन्दु क्रमांक-६
इसके अतिरिक्त दिगम्बर ग्रन्थ 'षटखण्डागम' तथा उसकी धवला टीका में भी ऐसा स्पष्ट उल्लेख है कि तिर्यञ्च स्त्री से देव संख्येयगुणा है ।२६ - उपसंहार :
उपर्युक्त प्रमाणों से सुसिद्ध है कि तिर्यञ्च स्त्री से देव स्त्री संख्येयगुण ही है। किन्हीं-किन्हीं सूत्रपाठों में तिर्यञ्च स्त्री से देव या देवपुरुष या देवस्त्री के असंख्येयगुण होने का जो कथन हुआ है, वह लिपि-प्रमादादि से समझना चाहिए।
सन्दर्भ स्थल १. ३७. जलचरपंचेंदियतिरिक्खजोणिणीओ संखेज्जगुणाओ
३८. वाणमंतरा देवा संखेज्जगुणा ३९. वाणमंतरीओ देवीओ संखेज्जगुणाओ ४०. जोइसिया देवा संखेज्जगुणा ४१. जोइसिणीओ देवीओ संखेज्जगुणाओ
- प्रज्ञापनासूत्र (पद ३) सूत्र ३३४, सम्पादक - मुनि श्रीपुण्यविजयजी २. "एतेसिं णं भंते ! नेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणित्थीणं मणुस्साणं मणुस्सीणं