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सप्टेम्बर - २०१८ महादण्डक (९८ बोल के अल्पबहुत्व) में ३७वें बोल से ४१वें बोल में अर्थात् तिर्यञ्च स्त्री से ज्योतिषी देवी को, क्रमशः संख्येय गुणा-संख्येय गुणा वर्णन होने पर भी सबको मिलाकर क्लिष्ट कल्पना से असंख्यात मानना उचित नहीं है। २ बिन्दु क्रमाङ्क-३
भगवतीसूत्र शतक २ उद्देशक ५ में कहा है कि "एक जीव एक भव में उत्कृष्ट पृथक्त्व लाख पुत्र उत्पन्न कर सकता है ।१६
प्रज्ञापनासूत्र के तृतीय पद में प्राप्यमाण महादण्डक (९८ बोल के अल्पबहुत्व) में ४१वें बोल ज्योतिषी देवी से ४२वें बोल (गर्भज) खेचर नपुंसक को संख्येयगुण माना है ।१७
___ यदि तिर्यञ्च स्त्री से देवों को असंख्येयगुणा माना जाए तो तिर्यञ्च स्त्री से गर्भज तिर्यञ्च नपुंसकों को भी असंख्येयगुणा मानना होगा अर्थात् ऐसा मानना होगा कि एक स्त्री असंख्य पुत्रों को जन्म देगी जो कि भगवतीसूत्र के उपर्युक्त कथन से विरुद्ध होगा क्योंकि वहाँ स्पष्ट बताया है कि एक जीव एक भव में पृथक्त्व लाख अर्थात् संख्येय पुत्रों को जन्म दे सकता है इससे यह सिद्ध होता है कि २६वें बोल में तिर्यञ्च स्त्री से ४१वाँ बोल ज्योतिषी देवी संख्येयगुणी ही है, असंख्येय गुणी नहीं। → बिन्दु क्रमांक-४
महादण्डक में ३७वें बोल से ४५वें बोल तक का अल्पबहुत्व इस प्रकार बताया है :
३७. जलचर तिर्यञ्च स्त्री संख्येयगुणी ३८. वाणव्यन्तर देव संख्येयगुणा ३९. वाणव्यन्तर देवी संख्येयगुणी ४०. ज्योतिष्क देव संख्येयगुणा ४१. ज्योतिष्क देवी संख्येयगुणी ४२. खेचर तिर्यञ्च नपुंसक संख्येयगुणा ४३. स्थलचर तिर्यञ्च नपुंसक संख्येयगुणा ४४. जलचर तिर्यञ्च नपुंसक संख्येयगुणा ४५. चतुरिन्द्रिय पर्याप्त संख्येयगुणा८